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सोमवार, 23 अप्रैल 2012

गायत्री वाला थानेदार

कार्तिक स्नान को आते-जाते धर्माथी
रिद्वार में तीर्थयात्रियों का मेला-रेला लगा हुआ था, गाड़ियों की तो क्या कहें, ट्रेनों के इंजन पर भी लोग चढ कर आ रहे थे। एक रेला आता था और एक रेला जाता है। लोग कार्तिक पूर्णिमा के अवसर स्नान-दान करने आते हैं। जब हरिद्वार पहुंचा था तो ट्रेन में मिली माता जी (जिसने चौरसिया जी 21 रुपए की दक्षिणा दी थी) प्लेट फ़ार्म पर बैठ कर टी टी को ढूंढ रही थी। मेरे पूछने पर कहने लगी कि - बेटा उसे दक्षिणा देनी है, मैं बहुत खुश हूँ कि वह मुझे ट्रेन में बैठा कर लाया। उसे ही देख रही हूँ मिले तो कुछ रुपए उसे दूँ।" माता जी गद गद होकर टी टी को ढूंढ रही थी। ट्रेन में भीड़ होने के कारण जिसने टिकिट नहीं ली वे भी तर गए। मतलब गंगा नहा लिए बिना टिकिट भी, धर्म कर्म करने के लिए भी सौ-पचास की टिकिट की चोरी कर लेते हैं लोग। बिना टिकिट ही धर्मयात्रा करना है तो तीर्थ करने का क्या मतलब?

पुलिस (चित्र गुगल के सौजन्य से)
धर्म आध्यात्म की ओर ले जाता है, अध्यात्म= अध्य+आत्म, स्वयं को जानना। जिसने स्वयं को जान लिया उसने सब कुछ जान लिया। यही अध्यात्म है, अपने को जानने की बजाए लोग दुसरों को जानने के लिए भटकते हैं। एक थानेदार हैं गोमती नगर थाने में लखनऊ के। जिनका नाम राजकु्मार प्रजापति है। उनके बारे में चर्चा चल रही थी परिजनों के बीच, तो मैने भी कान लगा लिए उधर। कहते हैं कि उनके सामने कोई लेन-देन की बात तक करने की हिम्मत नहीं जुटा पाता। गलत काम कराने का इच्छुक कोई व्यक्ति ऐसा करना भी चाहे तो लोग उसे पहले ही चेता देते हैं, गायत्री वाले दरोगा हैं क्यों मुसीबत मोल लेते हो। खुद के व्यक्तित्व में आए बदलाव का श्रेय राजकुमार प्रजापति आचार्य श्री राम शर्मा जी को देते हैं। राजकुमार प्रजापति 1987 में शांतिकूंज आए और फ़िर आचार्य के विराट व्यक्तित्व और कृतित्व के होकर रह गए।

नशामुक्ति प्रचार (गायत्री परिवार के सौजन्य से)
आचार्य के विचारों से प्रभावित होकर जब वे घर गए तो उन्होने नशा मुक्ति और जनसेवा का बीड़ा उठा लिया, अभी तक वे अपने सम्पर्क में आने वाले 300 से अधिक युवाओं की नशे की लत छुड़वा चुके हैं। उनके लिए आगत की सेवा ही सबसे बड़ा मकसद है। राजकुमार के पास आए किसी पीड़ित को अधिकारियों के पास चक्कर नहीं काटने पड़ते। वर्तमान भ्रष्ट्राचार के पंक में डूबी व्यवस्था में ईमानदारी से नौकरी करना भी कठिन कार्य है। लेकिन राजकुमार इससे वास्ता नहीं रखते, उनकी ईमानदारी और सेवाभाव को आला अफ़सर भी सम्मान देते हैं। उनका आत्मबल ही उन्हे ईमानदारी से कार्य करने की प्रेरणा देता है। यह शक्ति सिर्फ़ आध्यात्म से ही आ सकती है। इसीलिए कहा गया है कि अध्यात्म में बड़ा बल है। इसका चमत्कार मैने भी देखा है। आत्मबल हो तो बड़ी बड़ी कठिनाईयों पर व्यक्ति विजय पा लेता है। ऐसे कर्तव्य के धनी व्यक्तित्व के विषय में सुन कर अच्छा लगा। पुलिस जैसे महकमें ऐसे लोग भी हैं, यह गर्व की बात है। 

हरिद्वार में अपना बोझा लादे ब्लॉगर
हरिद्वार की खट्टी मीठी यादों को संजो रहे थे बैठकर स्टेशन में ट्रेन की प्रतिक्षा करते हुए। घुमने गए साथी भी धीरे-धीरे पहुंच रहे थे। तभी एक ट्रेन आकर लगी, नाम कुछ दूसरा लिखा हुआ था। लेकिन नम्बर सही था, यह हरिद्वार आकर एक घंटे खड़ी रहती है। फ़िर इंजन बदल कर इलाहाबाद के लिए रवाना होती है। कई बोगियों अलग-अलग रिजर्वेशन होने के कारण सामान जमाने में तकलीफ़ तो हुई। कुछ लोगों का इसमें भी रिजर्वेशन कन्फ़र्म नहीं हुआ था। उन्हे भी सीट दिलाई गयी। जिनके नाम का रिजर्वेशन हो गया था, उन्होने अपनी सीट संभाल ली, किसी दुसरे के बैठने लिए जगह न देनी पड़े। थोड़ा बहुत भी सब्र नहीं रहता लोगों को। रात तक सभी के लिए जगह बन गयी थी। मेरे बगल वाली साईड लोवर बर्थ पर 4 लोग टंगे थे। एक ने मुफ़्त में ही कब्जा कर रखा था। जब टी टी आया तो पता चला उसकी सीट नहीं है। फ़िर भी उन लोगों में आपस में हो हल्ला, जूतम पैजार होता रहा।

रेल में संध्या पाठ -आरती
दो महिलाएं हमारे साथ गयी महिला की सीट के नीचे बैठ गयी। काफ़ी रात हो गयी थी, उनके पास कोई सामान नहीं था। साथी महिला के कहने पर मैने उन्हे वहाँ से उठ जाने कहा। दो बार कहने बाद वे उठी तो सही पर बड़बड़ाने लगी कि "हम लोग कोइ चोर तो नहीं है, तुम्हारा कोई सामान उठाकर ले जाएगें।" किसी में माथे पर थोड़ी लिखा होता है कि वह चोर है। जब मौका मिला और माल पार हो गया, हम तो तुम्हारी ईमानदारी के भरोसे लुट पिट जाएगें। टीटी आकर उन्हे चिल्लाने लगा-"रिजर्वेशन हो तो बैठो गाड़ी में, नहीं तो जनरल में जाओ। तुम्हारे पास तो टिकिट भी नहीं है। कहाँ जा रहे हो? तो वो बोली आश्रम जा रहे हैं। "जब मरना ही है तो आश्रम में मरो, ट्रेन में क्यों आते हो? टीटी उन्हे धमका कर चला गया और वे बिना टिकिट सफ़र करती रही। पता नहीं कितने लोग रोज बिना टिकिट सफ़र करते हैं ट्रेन में। रेल्वे के कर्मचारी तो जेब में युनियन का कार्ड डाले किसी की सीट पर भी कब्जा जमा लेते हैं। जबकि उन्हे सामान्य टिकिट पर स्लीपर में यात्रा करने अनुमति नहीं है। चल रहा है तो चलाए जाओ किसने मना किया है, रेलगाड़ी तुम्हारे बाप की है।

लखनऊ में मुख्यमंत्री मायावती जी के साथ मंत्रणा
हम जा रहे थे लखनऊ की ओर, लखनऊ में एक दिन का विश्राम करने का ईरादा था। इस विषय पर पहले ही लिख चुका था। मोबाईल की बैटरी बार-बार लो बता रही थी। अब कितनी बार बैटरी लूँ, इसको  भी  बीमारी लगी हुई थी। बैटरी लो बताने की। इसलिए रात को मोबाईल बंद कर दिया कि लखनऊ पहुंचने पर महफ़ूज मियां को फ़ोन लगाने लायक तो जान रहे फ़ोन में। रात 2 बजे हम लखनऊ पहुंचे, याद आया एक बार मायावती बहन जी ने हमें लखनऊ की सैर कराई थी। अब महफ़ूज मियां के गले पड़ना था। स्टेशन में उतर कर उन्हे फ़ोन लगाने लगे तो मोबाईल में नम्बर ही नहीं था, मैने सेव नहीं किया था और नम्बर भूल चुका था। अब मोबाईल रखने का भी कोई मतलब नहीं निकला। स्टेशन पर चाय पीते टहलते रहे। हमारे साथी दैनिक क्रिया की जगह की तलाश कर रहे थे। कहीं सामान रख कर स्नान ध्यान करके लखनऊ घूमा जाए। प्लेट फ़ार्म के भीतर बाहर हमने खूब चक्कर लगा लिया। महफ़ूज मियां दिखाई नहीं दिए। आखिर मैने सोचा कि क्यों कोई अपनी रात खराब करेगा? सुबह पता करेगें स्वामी महफ़ूजानंद को। अभी तो अयोध्या चला जाए। जारी है........ आगे पढें
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तपोभूमि से जन्मभूमि के दर्शन

गायत्री तपोभूमि-मुख्यद्वार
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गायत्री तपोभूमि जहाँ श्रीराम शर्मा ने अखंड ज्योति जलाई थी, आज गायत्री परिजनों के लिए शक्ति का केन्द्र एवं तीर्थ स्थल बन चुका है। यहां ठहरने एवं भोजन की उत्तम व्यवस्था है, भोजन एवं प्रात:राश समय पर उपलब्ध होता है। हम समय के दायरे के बाहर थे इसलिए भोजन एवं प्रात:राश से वंचित रहे। दिन ढल चुका था, हमारे साथी स्वव्यवस्थानुसार भ्रमण पर जा चुके थे। किंचित आराम करने के पश्चात हम लोग (मैं और गिलहरे गुरुजी) मथुरा भ्रमण को चल पड़े। तपोभूमि से कृष्ण जन्मभूमि जाने के लिए ऑटो की सवारी ली। रास्ते में पवन वर्मा भी पैदल आते दिख गए, उन्हे आवाज देकर ऑटो में साथ बैठा लिया। भूख लग रही थी, मन में कुछ चटर-पटर खाने की इच्छा थी। ऑटो वाले ने रेल्वे क्रासिंग पर छोड़ दिया। वहाँ चौक से 25 कदमों की दूरी पर जन्मभूमि है। जन्मभूमि सड़क पर यु पी पी ने सुरक्षा घेरा डाल रखा था। अगले दिन बकरीद थी, इसलिए सुरक्षा व्यवस्था बढी हुई लगी।

हृदयलाल गुरुजी और इडली पाक
सड़क पर मद्रास रेस्टोरेंट का बोर्ड लगा देखा तो दक्षिण भारतीय नास्ता करने की इच्छा हुई। सामने ही पेड़े वाले की दुकान थी, मैने गुरुजी से एक पाव पेड़े लेने को कहा और रेस्टोरेंट में प्रवेश किया। रेस्टोरेंट साधारण दर्जे का ही था, उसका मालिक भी मथुरा का ही था। उससे खाने के विषय में पूछा तो उसने कहा कि 10 मिनट में सांभर बनने पर इडली खिला सकता हूँ। मैने उसे लस्सी का लाने कहा और तब तक पेड़े का स्वाद लेने लगे। लस्सी भी केशरयुक्त उम्दा किस्म की थी। हाँ थोड़ी मीठी अधिक थी। फ़िर सांभर इडली भी आ गयी। सांभर का स्वाद बहुत अच्छा था। मैने सांभर बनाने की विधि पूछी और मसाले के विषय में जानकारी ली। दक्षिण भारतीय मसाले की अपेक्षा यहां की सांभर में थोड़ी खटाई एवं मिर्च की मात्रा अधिक थी। होटल वाले ने अपना नाम सौरभ शर्मा बताया और कहा कि उसके बड़े भाई और भी बढिया सांभर बनाते हैं पर वे अभी हैं नहीं। सांभर इडली का नाश्ता करके हम बाहर निकले तो पानी के पताशों (गुपचुप) का ठेला लगा हुआ था। थोड़ा उसका भी जायका लिया। अच्छा रहा यह जायका भी।

पवन वर्मा  - गुरु्जी
अब मंदिर की तरफ़ आगे बढे तो दर्शनार्थियों का रेला लगा हुआ था। गेट पर पहले मैनुअली एवं मेटल डिक्टेटर लगा कर दर्शनार्थियों की जांच की जा रही थी। जेब में रुपए पैसों को छोड़कर कुछ भी भीतर नहीं ले जाने दिया जा रहा था। पान-गुटका, मोबाईल इत्यादि बाहर ही रखवाया जा रहा था।  पवन वर्मा ने के पास बंदुक थी, इसलिए वे भीतर न जा सके, हमने अपना सामान उन्हे ही थमाया और मंदिर के भीतर प्रवेश किया। प्रवेश द्वार के समीप जूते-चप्पल इत्यादि रखने की जगह बनी थी। वहीं हमने अपनी पादुकाएं रखी, प्रसाद लेकर कृष्ण कन्हाई के दर्शन करने पहुंच गए। गुजरात और बंगाल से भी एक दल वहाँ आया हुआ था। दर्शन करके आने पर हमारे यात्री दल के लगभग लोग वहीं मिल गए। गुरुजी को सांभर का मसाला असर कर गया। वे मंदिर परिसर में व्यग्रता से जनसुविधा तलाश करने लगे। एक जवान से पूछने पर उसने जनसुविधा का रास्ता बताया। गुरुजी मुझे कोट थमा कर रफ़ुचक्कर हो गए। थोड़ी देर बाद आराम से पहुंचे, और बताया की गुपचुप का पानी असरदार था।

कृष्ण जन्मभूमी और शाही मस्जिद (गुगल से साभार)
मंदिर परिसर में अन्य तीर्थ स्थलों जैसे मनको-मूर्तियों की दुकाने लगी थी। नए ग्राहक फ़ंस रहे थे जाल में और मुड़ा रहे थे मुड़। मंदिर के आंगन में खड़े होने पर जन्मभूमि की जड़ में बनी हुई मस्जिद भी दिखाई दे रही थी। ऐसा सभी जगहों पर दिखाई देता है, जब मुगलों का शासन रहा तब उन्होने अपनी शक्ति का दुरुपयोग करते हुए हिन्दुओं के तमाम तीर्थ स्थानों पर एक मस्जिद या मजार जरुर बनवा दिया। चाहे अयोध्या हो या काशी विश्वनाथ। काशी विश्वनाथ में तो सिर्फ़ मंदिर की छत को तोड़ कर उसे मस्जिद का रुप दे दिया गया। नीवं और स्तम्भ मंदिर के ही है। चाहे हम कितने भी साम्प्रदायिक सौहाद्र की मिशाल बनने की कोशिश करें पर ऐसे हालात देख कर थोड़ा अटपटा तो लगता है। मंदिर परिसर में कैमरे नहीं ले जाने दिए जाते, अन्यथा आपको चित्र दिखाए जाते। काशी विश्वनाथ मंदिर में भी कैमरे और मोबाईलफ़ोन ले जाने की मनाही है। मंदिर परिसर में ही एक कृत्रिम गुफ़ा बनाई गयी है, इसके दर्शन करने लिए 3 रुपए की टिकिट लेनी पड़ती है।

कृष्ण जन्मभूमि मुख्यद्वार
मंदिर परिसर के रेस्ट हाऊस के समीप ही एक रेस्टोरेंट है, जहां कम कीमत पर अच्छा भोजन मिल जाता है। हमारी चावल खाने की इच्छा थी। क्योंकि मंदिर परिसर में मिले सहयात्रियों ने बताया था कि तपोभूमि में शाम को ही एक घंटे भोजन मिलता है। इसलिए हमने भी बाजार से भोजन करके जाने की सोच ली। गुरुजी एवं पवन वर्मा ने भोजन की अनिच्छा जताई। फ़िर मुझे भी भोजन का कार्यक्रम स्थगित करना पड़ा। उसकी जगह 10 रुपए के पानी के पताशे उदरस्थ किए। बकरीद और देवउठनी की भीड़ बाजार में स्पष्ट दिख रही थी। ऑटो सब भरे हुए जा रहे थे। थोड़ी देर बाद हमें भी तपोभूमी के लिए ऑटो मिल गया। तपोभूमि पहुंच कर जल्दी सोना चाहता था। जिससे कुछ सोनागार में वृद्धि हो जाए। दो रात एवं दो दिनों से पूरी नींद नहीं ले पाया था। शरीर थक कर चूर हो गया था और साथ नहीं दे रहा था। तपोभूमि पहुंचने पर पता चला कि नंदकुमार (हमारा दूधवाला) और उसके साथी अभनपुर से सूमो में हरिद्वार जा रहे हैं और पड़ाव के रुप में अभी तपोभूमि पहुंचे हैं। इन्होने भी कमाल किया, 13 लोग सूमों 1400 किलोमीटर का सफ़र किस तरह करके आए होगें? यह समस्या इन पर ही छोड़ी और बिस्तर संभाल कर सोने लगा। 

वृंदा राक्षसी से भय से ग्रसित
निंदिया रानी धीरे-धीरे आगोश में ले रही थी, रात के 12 बज रहे थे।तभी मुझे दीनबंधू मिश्रा ने आवाज दी।"ललित महाराज सुत गेस का?" मुझे जवाब देना पड़ा उठकर। "काय होगे गा?" तो उन्होने कहा कि सांस नहीं आ रही है और छटपटाहट हो रही है और बोले कि "आपके पास ही सो रहा हूँ, कुछ समस्या होगी तो बताऊंगा, कह कर मेरे गद्दे पर ही लेट गए, पंखे के नीचे चित्त। मैने उनसे पूछ कि ठंडा पसीना भी आ रहा है क्या? तो उन्होने मना किया। मुझे थोड़ी तसल्ली हुई। वे लेट गए, लेकिन मेरी नींद का धनिया बो दिया। अब मै करवट बदलता सोच रहा था कि अगर इसे अटैक आ गया तो क्या व्यवस्था करनी पड़ेगी? कौन से अस्पताल पास है, जहाँ जीवन रक्षक सुविधाएं उपलब्ध हैं। वहाँ सीपीआर देते हुए पहुंचा जा सकता है कि नहीं? मै लेटे-लेटे आगे की कार्यवाही करने लगा। नीचे उतर कर आफ़िस में जाकर उन्हे अवगत कराया कि कुछ आकस्मिक दुर्घटना घटने पर कितनी देर में वहाँ सहायता उपलब्ध हो सकती है। संतुष्ट होने पर वापस आकर लेटा। दीनबंधु भैया अपने स्थान पर सोते दिखाई दिए। सहयात्रियों की जिम्मेदारी ने फ़िर नहीं सोने दिया। जैसे तैसे करके सुबह हुई और हमने वृंदा राक्षसी से मिलने जाने का उद्यम किया। आगे पढें
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