सुबह5 बजे उठकर स्नान किया और नास्ता करके 6 बजे सबने पूजा करके जल उठाया और रामपुर की ओर चल पड़े। मैं और दिनेश यात्रा में आगे ही चल रहे थे। तभी रामपुर में एक होटल से हमे किसी ने पुकारा, देखा तो देवी और नीनी महाराज एक तखत पर पड़े हैं। हमारे को देखते ही वे चढ बैठे, कहने लगे कि तुम लोगों ने हमें चुतिया बना दिया। हम लोग परेशान हो गए, रात को खाना नहीं मिला। यहां सुनसान में लूट-पाट का खतरा अलग से है। बस मत पूछो हमारी अच्छी धुनाई कर दी। नीनी महाराज को रात को बुखार चढ गया था और दवाई मेरे पास थी। मैने उन्हे मनाकर दवाईयाँ दी और उनके साथ चाय पी। अब हम लोग यात्रा के सबसे मुस्किल पड़ाव की ओर बढ रहे थे। रामपुर से नहर के उपर चलना था सड़क को छोड़कर।
रामपुर से नहर का रास्ता कुमरसार तक बहुत खराब है, नहर के उपर नुकीली रोड़ियाँ निकली हुई हैं और चिकनी मिट्टी के कारण फ़िसलन भी बहुत है। यह यात्रा का सबसे कठिन चरण है, इसे पार कर लिया तो और कोई बड़ी कठिनाई सामने नहीं आती, ऐसे लगता है कि हम देवघर पहुंच गए। रोड़ियों पर नंगे पैर नहीं रखे जा सकते। हमने चलते समय तय किया था कि कुमरसार पार करके नदी के किनारे सब मिलेंगे और वहीं पर साथ में भोजन करेंगे। दिनेश महाराज ने नहर पर अपनी चलने की गति बढा दी और मेरे से बहुत आगे निकल गए मैं भी अकेला उनके पीछे-पीछे चलता रहा, कुछ देर के बाद वे मेरी नजरों से ओझल हो गए। यह 9 किलो मीटर का रास्ता मैने 1 घंटा 20 मिनट में तय कर लिया और कुमरसार पहुच कर एक होटल में पीछे आने वालों का इंतजार करने लगा। दिनेश महाराज बिना रुके आगे निकल लिए।
जब ये सब पहुंचे तो इन्होने कहा कि नदी के उस पार रुकेंगे। मैं भी उठकर चल पड़ा, फ़िर रुका नहीं,नदी पार कर लिया। नदी में घुट्नों तक पानी था। कुछ लोग नदी के पार पर बैठ कर टोली में ग़ांजे की चिलम खींच रहे थे और हम आगे बढ रहे थे। विश्वकर्मा टोला पहुंच कर एक होटल में लेमन टी ली और आधा घंटा विश्राम करके आगे बढे, अब दिनेश महाराज का कहीं पता नहीं था और न डॉक्टर लोगों का। मैं अकेला ही बढा जा रहा था। विश्वकर्मा टोला से महादेव नगर और फ़िर चंदरनगर, चंदरनगर से जिलेबिया रोड़। मैं अकेले ही जिलेबिया रोड़ 12:30 को पहुंच चुका था। रास्ते में बहुत बढिया-बढिया होटल थे लेकिन इनका इंतजार करने के लिए किसी अच्छी जगह की तलाश में बस्ती पार कर रहा था, तभी सामने जा रहा एक कांवडीया बम चक्कर खा कर गिरा, लोग उस पर पानी छिड़कने लगे। लेकिन फ़िर वह उठा ही नहीं। उसके प्राण पखेरु वहीं उड़ गए थे। उनके दल को तलाश करने पर पता चला कि वह गोहाटी से आया था। जवान लड़का चल बसा था।
मेरा मन खट्टा हो गया और वहीं एक होटल के तखत पर पड़ा हुआ इनका इंतजार करने लगा। लगभग 3 बजे जोर की मुसलाधार वर्षा होने लगी। मैने उसी समय खाना खाया। ये सभी लोग भी लोग भी भिगते हुए वहां पहुंचे, हम भी चल पड़े इनके साथ। हमारा रात्रि विश्राम 8 किलोमीटर दूर सुईया में था। आज हम लोग बहुत चल लिए थे। काफ़ी थक गए थे। जांघों की चमड़ी भी छिल गयी थी, चला नहीं जा रहा था। इस विषम परिस्थिति में भी हमने जिलेबिया पहाड़ पार किया। पुलिस वाले हमें जल्दी पहाड़ पार करने की सलाह दे रहे थे। क्योंकि शाम रात को लूट-पाट का खतरा बढ जाता है और फ़िर बिहार पुलिस कहां तक सुरक्षा दे सकती है। हम पहाड़ के बाद जंगल से होते हुए टगेश्वरनाथ पार करते हुए सुईया पहुंचे तब रात के 9 बज रहे थे। यहां डेरा ढुंढने लगे रुक कर, लेकिन शरीर में इतनी जान नहीं बची थी कि आगे चलकर कोई जगह रुकने लिए ढुंढ ली जाए। चलना कोई नहीं चाहता था। सब एक दूसरे को मुंह से आदेश देते थे लेकिन हाथ पैर किसी का काम नहीं कर रहा था। हमने एक बड़े से टैंट में लगे होटल में खाने और रुकने की व्यवस्था देखकर डेरा लगाने का विचार बनाया। वहां पर बढिया पंखे चल रहे थे तो लगा कि रात को आराम अच्छे से हो जाएगा। फ़िर पता चला कि वे रात को पंखे बंद कर देते हैं। ये पंखे तो 11 बजे तक ग्राहक फ़ंसाने के लिए चलाए जाते हैं। 40 रुपए प्रति तखत के हिसाब से सोने का किराया तय हुआ। देवी और नीनी महाराज नहीं पहुंचे थे। अब हम लोग पड़ते ही सो गए।