दक्षिणेश्वर मंदिर हुगली गंगा के किनारे पर स्थित हैं यहां से बेलुर मठ के लिए नाव जाती है जो कि नदी के दूसरे किनारे पर स्थित है। हूगली नदी पानी से लबालब भरी हुई थी। बताते हैं इस नदी में शार्क मछलियां भी है जो यदा कदा मछुआरों के जाल में फ़ंस जाती है। इस नदी के बीच में पानी मे से रेत निकालने वाली मशीन भी लगी हैं जो रेत निकाल कर नाव में भरती है और यह रेत भवन निर्माताओं तक पहुंचती है। इस तरह नदी के पानी में से रेत निकालना मैने पहली बार देखा था। नाव वाले ने एक साथ 25 लोगों को नाव में सवार किया। इसका किराया प्रति व्यक्ति 10 रुपए था। हमारे साथ और भी अन्य लोग सवार हुए, कुछ लोगों ने सवार होने से पहले नाव को प्रणाम किया। मैं यह सब देख रहा था।
बेलूर मठ में एक बहुत सुंदर विशाल भवन है, जिसके चित्र यदा कदा देखने में आते हैं, यहां पर रामकृष्ण परम हंस की मूर्ती रखी हुई है। जिसके दर्शन निश्चित समय पर कराए जाते हैं। हम भी हाल में जाकर चुप चाप बैठ गए, कोई दो घंटे के बाद दर्शन हुए। लोगों ने आरती इत्यादि की। इसके बाद हम बेलुर मठ में घुमने निकले। एक जगह विवेकानंद विश्रांति स्थल हैं जहां पर उनका स्मारक बनाया हुआ है। इसे ओम मंदिर भी कहा जाता है। बेलुर मठ में दोपहर को भोजन मुफ़्त मिलता है, इसके लिए टोकन लेकर लाईन लगानी पड़ती है। हमारे पास इतना समय नहीं था कि टोकन लेकर भोजन के लिए लाईन लगायें। इसलिए हम बेलुर मठ से दर्शन करके बाहर निकल गए, और बस पकड़ने के लिए रोड़ तक पैदल चल कर पहुंचे।
बाबा धाम की यात्रा में हम अपने साथ कैमरे नहीं रखते क्योंकि रास्ते में कांवड़ियों के साथ लूट पाट हो जाती है। मैने सिर्फ़ मोबाईल रखा था सस्ता जिससे बात हो सके और लुट जाने पर कोई तकलीफ़ न हो। बाकी साथियों ने तो मोबाईल भी नहीं रखा था सब घर पर छोड़ आए थे। बात करनी होती थी तो एसटीडी पर कर लेते थे और उन्होने अपने घर मेरा मोबाईल नम्बर दे रखा था। इमरजेंसी में उनके घर के लोग मेरे मोबाईल पर फ़ोन कर सकते थे। इसलिए इस यात्रा के चित्र मेरे पास उपलब्ध नहीं है। जो भी चित्र हैं सब गुगल से साभार लिए गए हैं। अगर किसी को आपत्ति होती है तो हटा दिए जा सकते हैं।सड़क पर पहुंच कर हमने चाय पी, चाय का जिक्र इसलिए कर रहा हूँ कि यह कुछ विशेष है, हमने 5-5 कप चाय पी थी। यहां 1 रुपए में चाय छोटे छोटे सकोरे में दी जाती है जिसमें सिर्फ़ एक घूंट चाय ही आती है। इसलिए हमें अपनी चाय की इच्छा शांत करने के लिए 5-5 सकोरे चाय पी । इसके बाद कलकत्ता की नगरीय बस सेवा का आनंद पहली बार लिया। इतनी खटारा बस में हम पहली बार बैठे होगें। इसकी बॉडी भी अंग्रेजों के जमाने की लकड़ियों की बनी हुई थी। टीन टप्पर लगा हुआ था, जो बाबूजी की पैंट फ़ाड़ने के लिए काफ़ी था। हिचकोले लेती हुई बस कलकत्ता शहर के बीचों बीच रही थी जमाने को चिढाते हुए। अरे दो चार रुपए किराया बढा दो लेकिन बसें तो अच्छी रखो। ऐसी सलाह हमने बस वालों को दी।
चित्र - गुगल से साभार
ललित शर्मा
अरे दो चार रुपए किराया बढा दो लेकिन बसें तो अच्छी रखो। ऐसी सलाह हमने बस वालों को दी।
जवाब देंहटाएंशायद उनलोगों ने अब आपकी बात मान ली होगी .. रोचक ढंग से चल रही है आपकी यात्रा .. अगली कडी का इंतजार है !!
कब हुयी थी यह यात्रा -बड़े जोरदार है ! हुगली ,बेल्लूर मठ से बैजनाथ धाम ...
जवाब देंहटाएं@Arvind Mishra
जवाब देंहटाएंअभी यह यात्रा तो बहुत लम्बी चलनी है।
@संगीता पुरी
जवाब देंहटाएंये कामरेड माने तो सही किसी की।
फ़िर मुफ़्त में सलाह देने में अपने कौन से टके खर्च हो गए।
हा हा हा हा