हम असम की राजधानी गोहाटी के करीब पहुंच चुके थे। रेल में बैठे हुए पटरियों के किनारे बनी हुई झोंपड़ पट्टियों को देख रहा था। भारत के अन्य स्थानों जैसा यहां भी था। लोगों ने रेल्वे की जमीन पर कब्जा करके रिहायश बना ली थी। कहीं पर मछली मार्केट कहीं पर मटन मार्केट, बस भीड़ भाड़ लगी हुई थी। असम में 27 जिले हैं। असम शब्द संस्कृत के अस्म शब्द से बना है जिसका अर्थ आसमान होता है। प्राचीन भारतीय ग्रंथों में इस स्थान को प्रागज्योतिषपुर के नाम से जाना जाता था । पुराणों के अनुसार यह कामरूप की राजधानी था । महाभारत के अनुसार कृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध ने यहां के उषा नाम की युवती पर मोहित होकर उसका अपहरण कर लिया था । हंलांकि यहां की दन्तकथाओं में ऐसा कहा जाता है कि अनिरुद्ध पर मोहित होकर उषा ने ही उसका अपहरण कर लिया था । इस घटना को यहां कुमार हरण के नाम से जाना जाता है ।
कुछ लोगों की मान्यता है कि "आसाम" संस्कृत के शब्द "अस्म " अथवा "असमा", जिसका अर्थ असमान है का अपभ्रंश है। कुछ विद्वानों का मानना है कि 'असम' शब्द संस्कृत के 'असोमा' शब्द से बना है, जिसका अर्थ है अनुपम अथवा अद्वितीय। लेकिन आज ज्यादातर विद्वानों का मानना है कि यह शब्द मूल रूप से 'अहोम' से बना है। ब्रिटिश शासन में इसके विलय से पूर्व लगभग छह सौ वर्षो तक इस भूमि पर अहोम राजाओं ने शासन किया। आस्ट्रिक, मंगोलियन, द्रविड़ और आर्य जैसी विभिन्न जातियां प्राचीन काल से इस प्रदेश की पहाड़ियों और घाटियों में समय-समय पर आकर बसीं और यहां की मिश्रित संस्कृति में अपना योगदान दिया। इस तरह असम में संस्कृति और सभ्यता की समृद्ध परंपरा रही है।
चारों तरफ़ हरियाली, पहाड़ों और नदियों से समृद्ध ब्रह्मपुत्र के देश असम मन को मोह लेता है। रमणीय प्रदेश है, लेकिन यहां की हवाओं में बारुद की गंध आती है, जिससे मन में एक अज्ञात भय उत्पन्न होता है। सब तरफ़ मिलेट्री वर्दी ही दिखाई देती है। जहां देखो वहीं गन लिए हुए मिलेट्री और बार्डर सिक्योरिटी फ़ोर्स के जवान ही दिखाई देते हैं। यहां के लोगों को इनके साथ ही मिलकर जीने की आदत पड़ गयी है। अगर कोई नया आदमी यहां आए तो एकबारगी उसके मस्तिष्क में कई भ्रांतियां जन्म ले लें। हम लगभग सुबह 7-8 बजे रेल्वे स्टेशन गोहाटी पहुंच चुके थे। अपना सामान लेकर होटल की तलाश में निकले।
गोहाटी शहर रेल्वे लाईन के दोनो तरफ़ बसा हुआ है। होटल इत्यादि रेल्वे स्टेशन के परली तरफ़ हैं। हम अपना सामान उठा कर रेल्वे लाईन पार कर बाजार में पहुंचे, और होटल ढुंढने लगे। दो घंटे में हमें किसी भी होटल में कमरा नहीं मिला। कहीं एक दो कमरे मिले। लेकिन हम सभी के लिए एक जगह पर रुम की व्यवस्था नहीं हो सकी। दो घन्टे धक्के खाने के बाद हम वापस रेल्वे स्टेशन आ गए। युएसए ने कहां कि यहीं रिटायरिंग रुम में रुका जाए। सबसे महफ़ूज जगह है। हमने 750 रुपए प्रतिदिन के हिसाब से 4 एसी रुम लिए। जिसमें 8 लोग सेट हो गए। नहा धोकर सबसे पहले भोजन की व्यवस्था करनी थी। गोहाटी हमारे लिए नया था, जो जान पहचान के लोग थे उनका नम्बर मैं डायरी में घर ही भूल आया था।
स्टेशन से बाहर निकलते ही सामने बीएसएफ़ एवं आर्मी के ट्रांजिट कैंप हैं। वहां इनकी मेस भी है। हमने मेस में पहुंचकर उनसे भोजन की व्यवस्था का निवेदन किया तो उन्होने हमारा निवेदन स्वीकार कर लिया, मेस में 20 रुपए में भरपेट अच्छा भोजन मिल जाता है, लेकिन यह भोजन सिर्फ़ सुरक्षा बलों के लिए ही उपलब्ध है। बाद में हमें पता चला कि ब्रह्मपुत्र के किनारे बहुत से मारवाड़ी भोजनालय हैं जहां भोजन की व्यवस्था हो सकती है। लेकिन हमने मेस में ही भोजन करना उपयुक्त समझा। यहां गेंहू के आटे की रोटियां मिल जाती थी। हम पहले ही मैदा की रोटी खाकर अपना पेट खराब कर चुके थे। मेस में हमने खाना खाकर कचहरी के पास से प्रसिद्ध कामख्या मंदिर के लिए बस पकड़ी।
चित्र-गुगल से साभार
चलिये, दो साल पहले की असम यात्रा की यादें ताजा कर रहे हैं आपके साथ घूम कर.
जवाब देंहटाएंजारी रहिये.
पहुंचो जी कामख्या। हम भी ठाली बैठे हैं।
जवाब देंहटाएं1983 में मैं दो साल तक गुवाहाटी में रह चुका हूँ...पुराने दिनों की याद ताज़ा हो गई
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