हमारी मंजिल 170 किलोमीटर दूर थी। रास्ते में काफ़ी हरियाली थी। 1 बजे हम काक द्वीप पहुंचे। यहां गंगा नदी अपना डेल्टा बनाती है, जिसे सुंदर वन कहते हैं, सुंदर वन में अभी शेर हैं,यदा कदा मछुवारों पर इनके हमले की खबर आते रहती है। ये शेर पानी में शिकार करने के अभ्यस्त हो गए हैं, पानी में चुपके से तैर कर नाव पर हमला बोल देते हैं। सुंदर वन में मधुमक्खी के छत्ते भी बहुत है, सैकड़ों परिवारों का रोजगार इन छत्तों से शहद निकालने से चलता है। ये विशेष जाति के लोग शहद ही निकालते हैं अपनी जान जोखिम में डालकर क्योंकि कभी भी शेर के हमले का शिकार हो सकते हैं। एक खासियत और है ये कभी मधुमक्खी के छत्ते को जड़ से खत्म नहीं करते, जितने हिस्से में शहद है उसे ही तेज धार हंसिए से काट लेते हैं।
यहां पर गंगा नदी का पाट लगभग2-3 किलोमीटर चौड़ा है, गंगा सागर वाले द्वीप तक पहुंचाने के लिए बड़े-बड़े स्टीमर चलते हैं जिसमें सैकड़ों आदमी, अपनी भेड़-बकरी सायकिल, मोटर सायकिल के साथ बैठ जाते हैं। हर घंटे में यहां स्टीमर आता और जाता है। प्रति सवारी शायद साढे तीन रुपया किराया लिया। यहां किराया बहुत सस्ता है। हम टिकिट लेकर स्टीमर में सवार हो गए। ड्रायवर ने बताया की उस पार जाने में लगभग डेढ घंटा लगेगा। हम लोगों ने विचार किया कि खुली छत पर ही बैठकर नजारे देखे जाएं। हम टीन की बनी हुई छत पर बैठ गए और वहीं पर भोजन भी किया। भोजन हम अपने साथ ले गए थे। डॉक्टर श्रीधर के यहां की बनी हुई इटली यहां काम आई।
हम डेल्टा में पहुंचे यहां से सागर का किनारा 32 किलो मीटर की दूरी पर है। हमने फ़िर यहां एक टाटा सूमो 500रुपए में किराए पर ली, जो कि हमे वापस भी पहुंचाएगा। जब हम यहां के सागर के किनारे पर पहुंचे तो ऐसा लगा कि जैसे मॉरिसश का कोई सागर तट है। बहुत ही सुंदर सागर तट है। मैने लगभग भारत के सभी सागर तट देखे हैं, लेकिन मुझे सबसे सुंदर यहां का सागर तट लगा। यहां मकर सक्रांति को मेला भरता है दुनिया भर के तीर्थ यात्री यहां आते हैं। कहा गया है कि”सारे तीरथ बार बार-गंगा सागर एक बार” कहते हैं कि यहां कपिल मुनि ने आश्रम बनाकर तपस्या की थी। वह आश्रम अब समुद्र में समा गया है। मकर सक्रांति को ज्वार आने पर वह आश्रम दिखाई देता है और वहां दर्शन होते थे, ऐसी किवदंती है। लेकिन अब ऐसा नहीं होता है।
समुद्र के किनारे पूजा का सामान बेचने वालों की दुकाने हैं। वे बिछाने के लिए पालिथिन भी देते हैं जिसपर आप सामान और कपड़े भी रख सकते हैं, लेकिन कपड़ों का ध्यान रखना जरुरी है, नहीं तो अंडरवियर में ही कलकत्ता वापस आना पड़ेगा। यहां नारियल पानी मिलता है, काफ़ी बड़ा नारियल था मैं तो एक भी पूरा नहीं पी सका। हमने लगभग डेढ घंटे समुद्र में अठखेलियाँ की, जम कर स्नान किया। उपर का पानी गरम था और अंदर का पानी ठंडा। दूर-दूर तक समुद्र ही समुद्र अपनी विशालता और महानता प्रदर्शित कर रहा था। एक पंडा महाराज पहुंच गए,उनसे हमने समुद्र पूजा कराई।
अब हम कपिल मुनि के मंदिर पहुंचे जो समुद्र से डेढ किलोमीटर पर बना हुआ है। मंदिर के पुजारी से मेरी चर्चा हुई, उसने बताया कि समुद्र के अंदर की कपिल मुनि की मूर्ती को बाहर निकाल कर यहीं मंदिर में स्थापित किया गया है। यह मंदिर हनूमान गढी अयोध्या वालों की देख रेख में संचालित होता है। सभी पुजारी वहीं से आते हैं। हमने मंदिर में पूजा करवाई और प्रसाद लिया। गांव में बांटना जो था। तीर्थ यात्रा का प्रसाद इष्ट मित्रों के यहां पहुंचाने की परम्परा है। हम अपनी गाड़ी के पास पहुंचे क्योंकि आखरी स्टीमर के जाने का समय हो रहा था। उसका भोंपू बज जाता तो हमें रात गंगा सागर में ही गुजारनी पड़ती
हमें स्टीमर टाईम पर मिल गया। इतना समय भी मिल गया कि हम चाय पी सकें। वहीं किनारे पर बने हुए एक होटल में चाय पी। स्टीमर चल पड़ा। उस पार हमारी टैक्सी इंतजार कर रही थी। आज रथ यात्रा का दिन था याने रथ दूज, यहां रथ यात्रा का त्योहार जोर शोर से मनाया जाता है। रास्ते में जगह-जगह रथ यात्रा के कारण सड़कें जाम मिली। सारी भीड़ बाजे-गाजे के साथ सड़क पर ही थी। हम रात 9 बजे कलकत्ता पहुंचे। युएसए ने कहा कि अब के सी दास के होटल में मिठाई खाएंगे, यह कलकत्ता का मशहूर होटल हैं जहां मिठाइयाँ बनते ही बिक जाती हैं। मेरा मन नहीं था मिठाई खाने का, इन्होने सब तरह की मिठाइयाँ चखी। मैने सिर्फ़ संदेश का स्वाद लिया। फ़िर पहुंच गए अपने रिटायरिंग रुम में बिस्तर पर लोटने के लिए।
गंगा सागर के विषय में पौराणिक जानकारी हेतु यहां क्लिक करें।
फ़ोटो गुगल से साभार
ललित शर्मा
यूं ही अपनी सक्रियता बनाएं रखें
जवाब देंहटाएंगंगाजी के बारे में आपने अच्छी जानकारी दी
बेहतर पोस्ट
आपके यात्रा संस्मरण पढने का आनंद ही कुछ और है।
जवाब देंहटाएंयात्रा के साथ अपने आस पास की सभी जानकारियाँ समेट लेते हैं।
मजा आ रहा है।
दर वन में अभी शेर हैं,यदा कदा मछुवारों पर इनके हमले की खबर आते रहती है। ये शेर पानी में शिकार करने के अभ्यस्त हो गए हैं, पानी में चुपके से तैर कर नाव पर हमला बोल देते हैं
जवाब देंहटाएंशेर के हमलों के विषय में अच्छी जानकारी है।
सुंदर वन में मधुमक्खी के छत्ते भी बहुत है, सैकड़ों परिवारों का रोजगार इन छत्तों से शहद निकालने से चलता है। ये विशेष जाति के लोग शहद ही निकालते हैं।
जवाब देंहटाएंशहद निकालना भी जान जोखिम का काम है। जंगलों पर ही आधी आबादी से ज्यादा का भोजन निर्भर है।
गर के किनारे पर पहुंचे तो ऐसा लगा कि जैसे मॉरिसश का कोई सागर तट है।
जवाब देंहटाएंभारत में और भी सुंदर सागर तट हैं लेकिन सरकार उनका पर्यटन हेतु प्रचार-प्रसार नहीं कर रही है। अगर ये तट भी पर्यटन के लिए खोल दिये जांए तो पर्यटन राजस्व में वृद्धि हो सकती है।
”सारे तीरथ बार बार-गंगा सागर एक बार”
जवाब देंहटाएंयह हमने भी सुना है लेकिन इसके विषय में जानकारी पहली बार मिली है। आपकी यात्रा हमारे लिए जानकारियों के हिसाब से लाभदायक है।
हमने मंदिर में पूजा करवाई और प्रसाद लिया। गांव में बांटना जो था। तीर्थ यात्रा का प्रसाद इष्ट मित्रों के यहां पहुंचाने की परम्परा है।
जवाब देंहटाएंतीर्थ यात्रा से आने के बाद पौराणिक परम्पराओं का निर्वहन करना भी जरुरी हो जाता है।
एक बात तो कहना भूल ही गया था-पोस्ट लगाने के बाद मुझे एक ई मेल अवश्य कर दें। मैने आपको मेल कर दिया है।
जवाब देंहटाएंवाह ललित जी आपके इस ब्लॉग को पढ़कर तो बड़ा मज़ा आ रहा है
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया यात्रा संस्मरण हैं आपने तो पूरा भारत ही देख डाला शायद
अब नियमित रूप से पढ़ूँगा इस ब्लॉग को
एक जगह इटली का जिक्र आया है संभवत: आपका आशय इडली से होगा