5-5 रुपए में स्पेसियों वाले ने ब्रह्मपुत्र के किनारे पहुंचा दिया। जहां बोट में होटल बने हुए हैं। ब्रह्मपुत्र में पानी बहुत ज्यादा था। नदी उफ़ान पर थी। किनारे पर बोट होटल बने थे। हमने नदी में फ़ेरा लगाने वाली बोट का पता किया तो पता चला बस थोड़ी ही देर में जाने वाली है जो उमानंद मंदिर का एक चक्कर लगाकर वापस आएगी। बादल घिर आए थे मौसम सुहाना हो गया था। हम बोट पर गए वहां किचन भी थी। अब मजा आ जाएगे, बोट पर नास्ता करने का आनंद लेगें, डेक पर टेबल और कुर्सियां लगी थी, और भी पर्यटक थे। 60-60 रुपए की टिकिट ली हमने और बोट पर सवार हो गए। बोट लगभग डेढ घंटे घुमाता है। बोट चल पड़ी और बरसात होने लगी। शाम को बरसात में ब्रह्मपुत्र की बोट से सैर करना और गिरते हुए पानी का मजा लेना अद्भुत अनुभव रहा। हमने डेक पर बैठ कर चाउमीन का मजा लिया। बोट जब हवा के थपेड़ों से हिलती थी तो एक हाथ से चम्मच और प्लेट संभालनी पड़ती थी।
बस हम एक आयटम मिस कर रहे थे। डॉ. दराल भाई साहब वाली टीचर्स को। हा हा हा निकले थे धार्मिक यात्रा में सावन के महीने में, नहीं तो बिना पूरा मजा लिए वापस नहीं आते,सोडा के साथ व्हाईट मिस्चीफ़ भी चल जाती या ट्रांजिट कैम्प में स्कॉच तो मिल ही जाती। लेकिन तौबा ऐसी चीजों का नाम लेना ठीक नहीं है, हमारे देवी भाई नाराज हो जाएंगे। उमानंद आश्रम में पानी भर चुका था इसलिए हम वहां उतर नहीं सके। दूर से ही दर्शन किए, बरसात बढने के कारण डर लग रहा था कहीं बोट ही न डूब जा जाए। जब बोट किनारे लगी तो देखा कि बोट में नीचे केबिन में लोग आराम से जुआ खेल रहे हैं। वाह पुलिस से बचने का तो बहुत ही मुफ़ीद साधन है।
ब्रह्मपुत्र के किनारे-किनारे यह गोहाटी का मुख्य बाजार है, गोहाटी आने वाले एक बार जरुर इस बाजार और सड़क पर आते हैं। हम पैदल-पैदल ट्रांजिट कैंप आए, भोजन किया और रेल्वे स्टेशन पहुंच गए। यहां रेल्वे स्टेशन पर पूरी सुरक्षा व्यवस्था है, फ़ोर्स के जवान सेंड बैग की आड़ में अपनी गन लेकर हमेशा तैनात रहते हैं। अंदर घुसने के लिए मैटल डिक्टेटर से गुजरना पड़ता है और क्लोज सर्किट कैमरा सब रिकार्ड करता रहता और डिस्पले भी करता है। सुरक्षा व्यवस्था बहुत ही उम्दा किस्म की लगी। अब हम सब अपने लिहाफ़ में जाने को तैयार थे। रात हो चुकी थी, सोने के लिए रात का आमंत्रण था।
नवग्रह मंदिर-गोहाटी |
दूसरे दिन सुबह नहा धोकर हम नवग्रह मंदिर दर्शन करने गए। निन्नी महाराज सुबह उठकर एक बार फ़िर कामाख्या दर्शन करने के लिए चले गए। नवग्रह मंदिर एक पहाड़ी पर स्थित है। इस पहाड़ी बहुत सारे घर बने हैं। बरसात जारी थी। पहाड़ी की पतली सड़क पर चढना बहुत कठिन हो रहा था। सांस फ़ुल रही थी। सीधी चढाई थी। नवग्रह मंदिर में बहुत सारे दिए जल रहे थे। जो अंदर के अंधकार को दूर करने की पूरजोर कोशिश कर रहे थे। अंधेरे से दियों की लड़ाई चल रही थी। लोग नौ ग्रहों की पूजा में व्यस्त थे। हमने भी पूजा की। प्रसाद लिया और वापस रेल्वे स्टेशन की ओर चल पड़े। 11 बजे सुल्तान गंज के लिए हमारी ब्रह्मपुत्रा मेल थी। इसलिए समय से रेल्वे स्टेशन पहुंचना जरुरी था। रेल्वे स्टेशन पहुंच कर रिटायरिंग रुम चेक आऊट किया और स्टेशन पर ट्रेन का इंतजार करने लगे।
रामबती जाग उठी
दो रोटियाँ कितना दौड़ाती हैं?
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