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चौधरी की चाय, चौधरी की चाय के शोर के साथ आँख खुली। आँख बंद किए किए ही चाय का आर्डर दिया। महाराज भी उठ चुके थे, उन्होने एक चाय मुझे थमाई और एक चाय खुद थामी। 5 रुपये में चाय उम्दा थी, लेकिन कप छोटा था, महाराज ने चाय वाले से दुबारा कप में चाय डलवाई तब उनकी इच्छा पुरी हुई। सूरत जा चुका था कब का, खिड़की से बाहर झांके तो मणिनगर था, मतलब अहमदाबाद करीब था। विनोद भाई का फ़ोन आया उन्होने लोकेशन ली, थोड़ी देर में ड्रायवर का भी फ़ोन आ गया। उसने कहा कि वीआईपी लेन में स्टेशन के सामने गाड़ी खड़ी है, सामने ही मिलुंगा।
चौधरी की चाय, चौधरी की चाय के शोर के साथ आँख खुली। आँख बंद किए किए ही चाय का आर्डर दिया। महाराज भी उठ चुके थे, उन्होने एक चाय मुझे थमाई और एक चाय खुद थामी। 5 रुपये में चाय उम्दा थी, लेकिन कप छोटा था, महाराज ने चाय वाले से दुबारा कप में चाय डलवाई तब उनकी इच्छा पुरी हुई। सूरत जा चुका था कब का, खिड़की से बाहर झांके तो मणिनगर था, मतलब अहमदाबाद करीब था। विनोद भाई का फ़ोन आया उन्होने लोकेशन ली, थोड़ी देर में ड्रायवर का भी फ़ोन आ गया। उसने कहा कि वीआईपी लेन में स्टेशन के सामने गाड़ी खड़ी है, सामने ही मिलुंगा।

मणिनगर से अहमदाबाद के बीच ट्रेन ने काफ़ी समय ले लिया। डाऊन गाड़ी मान कर इसे पीट दिया गया और एक घंटे लेट हो गयी। एक चाय और पीकर खुमारी उतारने की कोशिश की। गाड़ी ने धीरे-धीरे चलकर स्टेशन तक पहुंचाया। प्लेट फ़ार्म की सीढियों पर चेकिंग चल रही थी, दो चार सिपहिया यात्रियों का बैग खुलवाने में लगे थे। हमें रोका नही, और हम रुके नहीं। स्टेशन से बाहर निकले तो गाड़ी लगी थी। ड्राईवर हाजिर था, लगभग 8 बज रहे थे। अहमदाबाद स्टेशन के बाहर निकलते ही, एक बहुत बड़ी होर्डिंग दिखाई दी। उसी गर्वीले अंदाज में जैसी लखनऊ स्टेशन के बाहर दिखाई दी थी। "हुं छुं अमदाबाद" लिखी हुई होर्डिंग सीना तान कर खड़ी थी। स्टेशन पर ट्रैफ़िक बहुत अधिक था। ड्राईवर जिग्नेश ने बताया कि सुबह और शाम स्टेशन के भीतर-बाहर जाना बहुत मुश्किल होता है। हमे अहमदाबाद ने ही बताया "हूँ छूँ अमदाबाद" । परिचय के बाद हम चल पड़े अपने ठिकाने पर, जिग्नेश से अहमदाबाद के रास्तों के बारे में पूछते हुए चलते हैं। वह में बीएसएनएल की 11 माले की ईमारत में ले जाता है। इस इमारत में 4 लिफ़्ट हैं, जिसमें 3 साधारण है और एक सुपरफ़ास्ट। कब 11 वीं मंजिल पर पहुंचती है पता ही नहीं चलता।

जिग्नेश आ चुका था, तभी मुझे याद आया कि अहमदाबाद में हमारे दिग्गज सीनियर ब्लॉगर रहते हैं। उनका नम्बर मेरे दूसरे फ़ोन में था। पाबला जी को फ़ोन लगाया उनका नम्बर लेने के लिए। थोड़ी देर में पाबला जी ने नम्बर दिया, मैने उनसे बात की। बड़े खुश हुए भाई, मुझे भी अच्छा लगा। गेस्ट हाऊस से निकल कर सबसे पहला काम था ब्लॉगर मित्र से मिलना। जिसे हमने आभासी पढा था, देखा था, समझा था लेकिन रुबरु नहीं हुए थे। जिस तरह लोग दिन की शुरुआत मंदिर के भगवान के दर्शन से करते हैं, उसी तरह हम किसी भी शहर में जाने पर दिन की शुरुवात ब्लॉगर देव के दर्शन से करते हैं। बस यह देव-देवी कृपा बनी रहे। पता पूछते-पूछते हम उनके 5 वें माले के दफ़्तर में पहुच गए। वे गायब थे, थोड़ी देर में पहुंच गए, हमने छत्तीसगढ की राम कथा की एक प्रति भेंट की। यह हम उनके लिए विशेष तौर पर लाए थे। जब घर से चले थे तो बेगानी जी से मिलना याद था। लेकिन रास्ते में भूल गए। इसलिए पाबला जी से नम्बर लेना पड़ा। संजय भाई ने फ़टाफ़ट काफ़ी बना कर पिलाई, उनके दर्शन के पश्चात फ़िर मिलने का वादा कर विदा लेकर कांकरिया तालाब के जसवंत हॉल की ओर चल पड़े।
कांकरिया तालाब अहमदाबाद का मुख्य आकर्षण है, यहाँ शाम को काफ़ी रौनक रहती है लोग पिकनिक मनाने और तफ़री करने आते हैं। इसके सामने ही मिला जसवंत राय हॉल्। गुजराती दर्जी सम्मेलन चल रहा था, नामदेव जी भी जाति मोह में यहां तक पहुच गए थे। स्टेज पर रौनक लगी थी, स्वामीनारायण सम्प्रदाय के दो साधु अतिथि के तौर पर मंच पर विराजमान थे। हम भी पिछली कुर्सियों पर बैठ गए जाकर। जिनके निमंत्रण पर नामदेव जी पहुंचे थे उन्हे ही फ़ुरसत नहीं थी परघाने की। इसलिए हमने कहा था कि घर से ही परघे परघाए चलो। क्या भरोसा उनकी बोली आपकी समझ में न आए। उस सज्जन को बुलाकर मैने नामदेव जी के बारे में बताया तो वे उन्हे मंच पर ले गए और शाल श्री फ़ल से सम्मान किया। नामदेव जी भी बिरादरी में मिल गए। सभी ने उन्हे देखा और पहचाना। अब हमने ईशारा किया कि काम खत्म हो गया आज का, अब आगे बढा जाए। जिग्नेश को पूछने पर उसने बताया कि पहले रुड़ाबाई नी बाव में चलते है फ़िर वहीं से गांधीनगर का अक्षर धाम देख लेगें। ये आईडिया सही लगा, समय का सदुपयोग हो जाएगा। हम गांधीनगर की ओर चल पड़े। विनोद भाई ने फ़ोन पर भोजन की खैर खबर ली।
अहमदाबाद से गांधीनगर के रास्ते पर बहुत सारे ढाबे हैं, जिनके साईन बोर्ड पर "काठियावाड़ी-पंजाबी खाना" लिखा है। काठियावाड़ी खाने के साथ पंजाबी खाना भी मिलता है। मैं पहले भी गुजरात का पंजाबी खाना खा चुका था। वह भी गुजराती खाने जैसा ही था। मतलब गुजराती अगर पंजाबी बोलेगा तो वह भी गुजराती में बोलेगा। हा हा हा। एक ढाबा बढिया दिखाई दिया, झमाझम सजावट बडे बड़े साईन बोर्ड और गाड़ियों की भीड़। हमने यहीं भोजन के लिए गाड़ी रोकी और तय किया कि काठियावाड़ी भोजन ही करेंगे। ढाबे नुमा होटल का नाम मारुतिनंदन होटल था। वेटर ने मीनू कार्ड सामने लाकर रख दिया। उसमें मारुतिनंदन स्पेशल बहुत कुछ दिखाई दिया, पर समझ नहीं आया।
हमने काठियावाड़ी थाली का आर्डर दिया। मुझे छाछ की बारहों महीने जरुरत रहती है। इसलिए छाछ देख कर मन प्रसन्न हो गया। वेटर ने पूछा कि रोटली चाहिए की रोटला। मैने बाजरे की रोटी खाने के इरादे से रोटले का आडर दे दिया। जब रोटी आई और एक कौर खाया तो कुछ खटक गया। मुझे बाजरे के आटे में मिलावट लगी। खाने का मन नहीं किया, लेकिन खाना थाली में न छोड़ने के कारण दो रोटले खा ही लिए, छोटे छोटे थे। अब यही रोटले आगे की यात्रा में भारी पड़ने वाले थे, यह मुझे मालूम नहीं था। जिग्नेश और नामदेव जी ने रोटली ली वे सुखी रहे। भोजन करके हम रुड़ा बाई नी बाव की तरफ़ बढे........... क्रमश यात्रा जारी है..........आगे पढें

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