कार्तिक स्नान को आते-जाते धर्माथी |
हरिद्वार में तीर्थयात्रियों का मेला-रेला लगा हुआ था, गाड़ियों की तो क्या कहें, ट्रेनों के इंजन पर भी लोग चढ कर आ रहे थे। एक रेला आता था और एक रेला जाता है। लोग कार्तिक पूर्णिमा के अवसर स्नान-दान करने आते हैं। जब हरिद्वार पहुंचा था तो ट्रेन में मिली माता जी (जिसने चौरसिया जी 21 रुपए की दक्षिणा दी थी) प्लेट फ़ार्म पर बैठ कर टी टी को ढूंढ रही थी। मेरे पूछने पर कहने लगी कि - बेटा उसे दक्षिणा देनी है, मैं बहुत खुश हूँ कि वह मुझे ट्रेन में बैठा कर लाया। उसे ही देख रही हूँ मिले तो कुछ रुपए उसे दूँ।" माता जी गद गद होकर टी टी को ढूंढ रही थी। ट्रेन में भीड़ होने के कारण जिसने टिकिट नहीं ली वे भी तर गए। मतलब गंगा नहा लिए बिना टिकिट भी, धर्म कर्म करने के लिए भी सौ-पचास की टिकिट की चोरी कर लेते हैं लोग। बिना टिकिट ही धर्मयात्रा करना है तो तीर्थ करने का क्या मतलब?
पुलिस (चित्र गुगल के सौजन्य से) |
धर्म आध्यात्म की ओर ले जाता है, अध्यात्म= अध्य+आत्म, स्वयं को जानना। जिसने स्वयं को जान लिया उसने सब कुछ जान लिया। यही अध्यात्म है, अपने को जानने की बजाए लोग दुसरों को जानने के लिए भटकते हैं। एक थानेदार हैं गोमती नगर थाने में लखनऊ के। जिनका नाम राजकु्मार प्रजापति है। उनके बारे में चर्चा चल रही थी परिजनों के बीच, तो मैने भी कान लगा लिए उधर। कहते हैं कि उनके सामने कोई लेन-देन की बात तक करने की हिम्मत नहीं जुटा पाता। गलत काम कराने का इच्छुक कोई व्यक्ति ऐसा करना भी चाहे तो लोग उसे पहले ही चेता देते हैं, गायत्री वाले दरोगा हैं क्यों मुसीबत मोल लेते हो। खुद के व्यक्तित्व में आए बदलाव का श्रेय राजकुमार प्रजापति आचार्य श्री राम शर्मा जी को देते हैं। राजकुमार प्रजापति 1987 में शांतिकूंज आए और फ़िर आचार्य के विराट व्यक्तित्व और कृतित्व के होकर रह गए।
नशामुक्ति प्रचार (गायत्री परिवार के सौजन्य से) |
आचार्य के विचारों से प्रभावित होकर जब वे घर गए तो उन्होने नशा मुक्ति और जनसेवा का बीड़ा उठा लिया, अभी तक वे अपने सम्पर्क में आने वाले 300 से अधिक युवाओं की नशे की लत छुड़वा चुके हैं। उनके लिए आगत की सेवा ही सबसे बड़ा मकसद है। राजकुमार के पास आए किसी पीड़ित को अधिकारियों के पास चक्कर नहीं काटने पड़ते। वर्तमान भ्रष्ट्राचार के पंक में डूबी व्यवस्था में ईमानदारी से नौकरी करना भी कठिन कार्य है। लेकिन राजकुमार इससे वास्ता नहीं रखते, उनकी ईमानदारी और सेवाभाव को आला अफ़सर भी सम्मान देते हैं। उनका आत्मबल ही उन्हे ईमानदारी से कार्य करने की प्रेरणा देता है। यह शक्ति सिर्फ़ आध्यात्म से ही आ सकती है। इसीलिए कहा गया है कि अध्यात्म में बड़ा बल है। इसका चमत्कार मैने भी देखा है। आत्मबल हो तो बड़ी बड़ी कठिनाईयों पर व्यक्ति विजय पा लेता है। ऐसे कर्तव्य के धनी व्यक्तित्व के विषय में सुन कर अच्छा लगा। पुलिस जैसे महकमें ऐसे लोग भी हैं, यह गर्व की बात है।
हरिद्वार में अपना बोझा लादे ब्लॉगर |
हरिद्वार की खट्टी मीठी यादों को संजो रहे थे बैठकर स्टेशन में ट्रेन की प्रतिक्षा करते हुए। घुमने गए साथी भी धीरे-धीरे पहुंच रहे थे। तभी एक ट्रेन आकर लगी, नाम कुछ दूसरा लिखा हुआ था। लेकिन नम्बर सही था, यह हरिद्वार आकर एक घंटे खड़ी रहती है। फ़िर इंजन बदल कर इलाहाबाद के लिए रवाना होती है। कई बोगियों अलग-अलग रिजर्वेशन होने के कारण सामान जमाने में तकलीफ़ तो हुई। कुछ लोगों का इसमें भी रिजर्वेशन कन्फ़र्म नहीं हुआ था। उन्हे भी सीट दिलाई गयी। जिनके नाम का रिजर्वेशन हो गया था, उन्होने अपनी सीट संभाल ली, किसी दुसरे के बैठने लिए जगह न देनी पड़े। थोड़ा बहुत भी सब्र नहीं रहता लोगों को। रात तक सभी के लिए जगह बन गयी थी। मेरे बगल वाली साईड लोवर बर्थ पर 4 लोग टंगे थे। एक ने मुफ़्त में ही कब्जा कर रखा था। जब टी टी आया तो पता चला उसकी सीट नहीं है। फ़िर भी उन लोगों में आपस में हो हल्ला, जूतम पैजार होता रहा।
रेल में संध्या पाठ -आरती |
दो महिलाएं हमारे साथ गयी महिला की सीट के नीचे बैठ गयी। काफ़ी रात हो गयी थी, उनके पास कोई सामान नहीं था। साथी महिला के कहने पर मैने उन्हे वहाँ से उठ जाने कहा। दो बार कहने बाद वे उठी तो सही पर बड़बड़ाने लगी कि "हम लोग कोइ चोर तो नहीं है, तुम्हारा कोई सामान उठाकर ले जाएगें।" किसी में माथे पर थोड़ी लिखा होता है कि वह चोर है। जब मौका मिला और माल पार हो गया, हम तो तुम्हारी ईमानदारी के भरोसे लुट पिट जाएगें। टीटी आकर उन्हे चिल्लाने लगा-"रिजर्वेशन हो तो बैठो गाड़ी में, नहीं तो जनरल में जाओ। तुम्हारे पास तो टिकिट भी नहीं है। कहाँ जा रहे हो? तो वो बोली आश्रम जा रहे हैं। "जब मरना ही है तो आश्रम में मरो, ट्रेन में क्यों आते हो? टीटी उन्हे धमका कर चला गया और वे बिना टिकिट सफ़र करती रही। पता नहीं कितने लोग रोज बिना टिकिट सफ़र करते हैं ट्रेन में। रेल्वे के कर्मचारी तो जेब में युनियन का कार्ड डाले किसी की सीट पर भी कब्जा जमा लेते हैं। जबकि उन्हे सामान्य टिकिट पर स्लीपर में यात्रा करने अनुमति नहीं है। चल रहा है तो चलाए जाओ किसने मना किया है, रेलगाड़ी तुम्हारे बाप की है।
लखनऊ में मुख्यमंत्री मायावती जी के साथ मंत्रणा |
हम जा रहे थे लखनऊ की ओर, लखनऊ में एक दिन का विश्राम करने का ईरादा था। इस विषय पर पहले ही लिख चुका था। मोबाईल की बैटरी बार-बार लो बता रही थी। अब कितनी बार बैटरी लूँ, इसको भी बीमारी लगी हुई थी। बैटरी लो बताने की। इसलिए रात को मोबाईल बंद कर दिया कि लखनऊ पहुंचने पर महफ़ूज मियां को फ़ोन लगाने लायक तो जान रहे फ़ोन में। रात 2 बजे हम लखनऊ पहुंचे, याद आया एक बार मायावती बहन जी ने हमें लखनऊ की सैर कराई थी। अब महफ़ूज मियां के गले पड़ना था। स्टेशन में उतर कर उन्हे फ़ोन लगाने लगे तो मोबाईल में नम्बर ही नहीं था, मैने सेव नहीं किया था और नम्बर भूल चुका था। अब मोबाईल रखने का भी कोई मतलब नहीं निकला। स्टेशन पर चाय पीते टहलते रहे। हमारे साथी दैनिक क्रिया की जगह की तलाश कर रहे थे। कहीं सामान रख कर स्नान ध्यान करके लखनऊ घूमा जाए। प्लेट फ़ार्म के भीतर बाहर हमने खूब चक्कर लगा लिया। महफ़ूज मियां दिखाई नहीं दिए। आखिर मैने सोचा कि क्यों कोई अपनी रात खराब करेगा? सुबह पता करेगें स्वामी महफ़ूजानंद को। अभी तो अयोध्या चला जाए। जारी है........ आगे पढें
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