सोमवार, 23 अप्रैल 2012

अयोध्या में कीमियागर

मुस्कुराईए कि आप लखनऊ में हैं :)))
मारे सभी साथी लखनऊ घूमने का मन बनाए बैठे थे। नामदेव जी और हमने तय किया कि अयोध्या चलते हैं। वहीं डेरा डालते हैं, 4/40 पर एक लोकल ट्रेन लखनऊ से फ़ैजाबाद के लिए चलती है 8 नम्बर प्लेटफ़ार्म से। जब हम जाने लगे तो 6 लोग और हमारे साथ हो लिए। सभी ने लोकल ट्रेन में डेरा डाल लिया। 20 रुपए की टिकिट अलग से लेनी पड़ी। हम 9 बजे लगभग फ़ैजा बाद पहुंच गए। फ़ैजाबाद से अयोध्या ले जाने का ऑटो वाले 10 रुपए लिया। हमें चौक पर छोड़ कर चला गया। यहाँ सुबह से ही रेला लगा हुआ था कार्तिक पूर्णिमा स्नान करने वालों का। सोचा कि आज बिड़ला धर्मशाला में जगह नहीं मिलेगी। जब बिड़ला धर्मशाला पहुंचे तो वहां एक मैनेजर मिले। उनसे रुम के लिए बात की। बड़ी देर बाद उन्होने जवाब दिया और एक बंदे को पहली मंजिल पर रुम दिखाने भेजा। रुम तो छोटा था, पर हमें तो अभी अपना सामान रख कर सरयू स्नान करना था, इसलिए जो मिल गया वही ठीक समझा।
मुंडन के बाद नाश्ता
नामदेव जी ने कहा कि अयोध्या आए है और कार्तिक पुर्णमासी का अवसर है, इसलिए मुंडन भी साथ-साथ करा लिया जाए। मुझे तो कुछ देर आराम करने की इच्छा हो रही, इसलिए मोबाईल चार्जिंग में लगा कर लेट गया। नामदेव जी कह गए की बांए हाथ की पहली नाऊ दूकान में मिलुंगा। थोड़ी देर आराम करके मैं और पंकज भी निकले। लेकिन नामदेव जी कहीं नहीं मिले। मुझे एक सेलून दिखाई दिया। मैं वहीं टिक गया और पंकज को नामदेव जी को ढूंढने भेज दिया। अब किस्सा सुनिए अयोध्या के नाऊ की दूकान का। उसने पूछा कि कितने वाली दाढी बनाएगें? मैने कहा कि दाढी बनवाने के भी अलग-अलग रेट हैं? हाँ, 10,20,50 वाली। ये क्यों? उसने शेविंग क्रीम दिखाई, 10 से 50 तक वाली। मैने कहा कि 5 रुपए में बिना शेविंग क्रीम के ही रगड़ दो। वो बोला दाढी? हमने कहा - मूड़। बोला- 5 में नहीं बनेगा। 10 की दाढी बनेगी और 20 में मुंडन होगा। गजब है यार, हमारे यहाँ तो 20 रुपए में दोनो काम हो जाता है। ह्म्म, अयोध्या के नाऊ हो, इतना तो हक बनता है राम की नगरी में।
आलु टिक्की का आनंद
उसने उस्तुरा उठा लिया और हमने मुड़ झुका दिया। चला लो जिधर तुम्हारा मन करे। उसने मुंडन किया और दाढी बनाई, हम 30 रुपए थमा कर कृतार्थ हुए। पंकज पहुंचा, बोला-पापा नहीं मिले। चलो आगे मिल जाएगें, हमने सीधा रास्ता पकड़ लिया। बाजार में रेलम पेल थी, पुर्णमासी स्नान के साथ मेला भी लगा हुआ था। अमरुद, सिंघाड़ा, मुरमुरा, मिठाई, चाट, फ़ुलकी की दूकाने सजी हुई थी मुख्यमार्ग पर सरयू तक। रास्ते में तुलसी उद्यान के पास एक चाट के ठेले पर डेरा डाल लिया। भूख जोरों से लगी हुई थी। कुछ खा लिया जाए तो आगे बढा जाए, अन्यथा भूख के मारे जान जाने का खतरा मंडरा रहा था। चाट वाले को दो टिकिया बनाने कहा। सर पर धूप चमक रही थी, सर मुंडाते ही ओले तो नहीं पड़े पर टकले पर धूप कहर ढा रही थी। इसलिए थोड़ी सी छाया की व्यवस्था के लिए उसके ठेले की छांव में आ गए। चाट का मसाला उम्दा था। दो चम्मच खाते ही समझ आ गया। दो दोने और बनाने का आडर दे दिया फ़टाफ़ट क्योंकि सरयू  तक भी पैदल मार्च करना था। चाट के तीन दोने उदरस्थ कर हम दोनो आगे बढे।
अयोध्या का मुख्य मार्ग
नर-नारी अपने बाल-गोपाल और परिजनों के साथ सरयू की ओर सरपट जा रहे थे। कुछ स्नानादि से वापस आ रहे थे, आने जाने वाले का रेला चल रहा था। अयोध्या पुलिस भी ड्युटी में लगी थी। माईक पर खोया पाया पुकार हो रही थी। हम तिराहे पर पहुचे तो वहाँ एक पंडाल लगा था जिसमें लोग स्वयं आकर ही पुकार लगा रहे थे, अपने खोए परिजनों को स्थान और पता ठिकाना बता रहे थे। लो जी सरयू तट आ गया, पहले भी कई बार आ चुके थे। लेकिन सरयू स्नान नहीं किया था। यहां घाट पर सरयू के पानी में रेत बहता है। इसलिए मन नहीं हुआ, पानी के छींटे मार कर निकल लिए। लेकिन अब स्नान की ठान चुके थे। पंडे अपने-अपने पाटे लगाए जजमानों की टोह में लगे थे। फ़ूल और बाती वाले 5 रुपए में एक दोना दे रहे थे। पानी में उतरा तो वह ठंडा था, सांस बंद करके एक डुबकी लगाते ही कुछ ठंड दूर हुई, शरीर का उष्मातंत्र जागृत हुआ, उसके बाद कई डुबकियाँ लगाई और अपने को धन्य समझा कि सरयू स्नान हो गया। अगर कोई कभी पूछेगा तो मैं भी कह सकूंगा कि सरयू स्नान किया था कभी।
सरयू तीरे यत्र तत्र पालिथिन 
घाट के रास्ते में भिखारियों ने अपने टाट बिछा रखे थे, कोई सांप लेकर बैठे थे तो कोई पूजा सामग्री। नदी तट पर प्लास्टिक की थैलियाँ बिखरी हुई थी। प्रदूषण फ़ैलाने समस्त कारक नदी के तीर पर बिखरे पड़े थे। किसी को प्रदूषण की चिंता नहीं। हम वापस चले, पंकज कुछ फ़ोटो ले रहा था। माईक पर सूचनाएं जारी थी, मेले की सूचनाओं का आनंद आ रहा था। एक कह रहा था .... दौलत के माई तोहार हम ईंहा इंतजार करित हैं, जहाँ-कहीं भी पुलिस चौकी के सामने चली आव।... लाल बहादूर जहाँ कहीं भी हैं, सुन रहे हो तो यहाँ आएं या जहाँ रात को रुके थे वहाँ पहुंचे। यहाँ हम आपका इंतजार कर रहे हैं। एक महिला कह रही थी ....... झांझन के बाबू जहाँ कहीं भी चले आओ, हम तुम्हारा इंतजार पुल पे कर रहे है। बहुत देर से हम तुम्हे ढूंढ रहे हैं, नहीं आए तो हम घर चली जाएगें ........  सुनील भाई नारायाण भाई, हम बहुत परेशान है। जहाँ कहीं भी हो चले आओ।........ राम दूलारे चले आओ चौकी के पास हम तोहार इंतजार करित हैं ........ नानु के बाबू चले आओ हम कब से आपको ढूंढत हई, चौकी मा हम अगोरत हंई।........ परिजनों से भीड़ भाड़ में बिछड़े परेशान-हलकान लोग उद्घोषणा के द्वारा सम्पर्क बनाने की कोशिश कर रहे थे।
चलते चलो
हमने भी सोचा कि नामदेव जी के लिए उद्घोषणा कर दी जाए ........ जहाँ कहीं भी हो बिड़ला धर्मशाला के रुम 35 में चले आओ, हम तोहार इंतजार करित हैं। मन में उद्घोषणा चल रही थी। बिना बिजली खर्च करे ही उन तक हमारा संदेश पहुंच गया। रास्ते में केले का भाव पूछा तो 30 रुपए दर्जन बताया, कुछ केले लिए और खाते हुए बिड़ला धर्मशाला तक पहुंच गए। स्नान-ध्यान और मुंडन के पश्चात भोजन करके सोने की घनघोर इच्छा थी। बिड़ला धर्मशाला के सामने एक सिंधी का होटल है। वहाँ अरवा चावल मिलता है, चावल भी अच्छी क्वालिटी का था। छत्तीसगढिया कई दिनों से चावल से दूर था। बढिया चावल देख कर वहीं डेरा जमाया। 35 रुपए थाली में अच्छा भोजन मिला, साथ में 20 रुपए प्लेट दही का। पंकज और मैं खाना खाकर धर्मशाला पहुंचे। मैने तो बिस्तर संभाल लिया और पंकज चेतन भगत के पीछे पड़ गया, बोला इसे खत्म करके ही मानुंगा। हमारे और भी साथी स्नान करके आ चुके थे उन्होने बरामदे में बिस्तर लगा लिए और सो गए।
पंकज - हनुमान गढी में
शाम को 5 बजे करीब फ़ोन बजने से नींद खुली। देखा तो महफ़ूज मियां का फ़ोन था, वो मुझे उलाहना दे रहे थे कि रात भर स्टेशन में ढूंढता रहा, आप मिले ही नहीं, नौ बजे घर आकर सोया। आपका मोबाईल भी बंद था। मैं मुस्कुराता रहा, लगता है कि हम दोनो ही एक दूसरे को ढूंढ रहे थे। फ़िर मिलन के वादे के साथ हमने फ़ोन को विराम दिया। घर फ़ोन लगा कर श्रीमती जी मुंडन की सूचना दी तो भड़क उठी- अकारण मुंडन कराने की क्या जरुरत थी। अभी कई शादियों में जाना है और आपने मुंडन करा लिया। हमने कहा कि शादियों में जाने के लिए विग बनवा लुंगा और नहीं बनी तो शादियों में जाना स्थगित कर देगें। कौन सी हमारे गए बिना किसी की शादी रुक जाएगी? उसे तो होना ही है, उनके जवाब से पहले ही फ़ोन बंद कर गहरी सांस ली, अब आगे की होगा रब्ब जाणे, मूड़ तो मूड़ा लिए, ओले तो पड़ेगें। झेल लेगें, अब टकले पर भी। नामदेव जी लौट आए थे, उन्होने बताया कि बाकी साथी रात की गाड़ी से लखनऊ से लौट रहे हैं। उनकी गाड़ी आठ बजे आएगी और उनके रुकने की व्यवस्था गायत्री मंदिर में कर आए हैं। चलो अच्छा किया आपने वर्ना हम तो चलने की ही स्थिति में नहीं थे।
हनुमान गढी के सामने लड्डू की दुकान
शाम को तैयार होकर हम फ़िर घुमने निकले, हनुमान गढी की ओर। हनुमान गढी में लाल लंगोटे वाले महाबीर से मिलना था। बहुत बरस हो गए थे उनसे मिले। हमारा संकट तो वही दूर करते हैं। भूत-पिशाचों से दूर रखते हैं। "संकट कटै मिटै सब पीरा, जो सुमिरे हनुमत बलबीरा" हनुमान गढी के समीप लड्डूओं की दुकाने लगी हैं चारों तरफ़। रात को लड्डू और फ़ूल माला लेकर पहुंच गए महावीर की शरण में। वहाँ उनके सामने बाबाजी प्रवचन कर रहे थे। दर्शन करके हमने कुछ देर प्रवचन सुना। फ़िर गायत्री मंदिर की खोज में निकले। कनक भवन के आगे गायत्री मंदिर है। वहाँ के विशाल प्रांगण में रुकने के लिए कमरे बने हुए थे। हमारे साथी 18 नम्बर कमरे में मिले। एक माता जी ने उन्हे भोजन लाकर दिया, मैने कुछ सिंघाड़े खाए, पंकज कहीं गायब हो गया था। फ़र्श पर बिछी जाजम पर लेटते ही दूसरी दुनिया में पहुंच गया। थकान ने कहीं का नहीं छोड़ा था। किसी की आवाज से आँख खुली तो पता चला कि 11 बज चुके हैं। हमारे साथी लखनऊ से लौट आए हैं। उन्हे लाने वाले ऑटो में बैठकर स्टेशन पहुंचा तो चौरसिया जी खड़े थे स्टेशन में। उनके साथ फ़िर ऑटो की सवारी की और बिड़ला धर्म शाला के सामने उतर गया। बिड़ला धर्मशाला स्टेशन से 5 मिनट के पैदल रास्ते पर है। दरवाजा खुला था, अपने रुम में पहुंचा तो पंकज लोटम लोट हुआ जा रहा था चेतन भगत के साथ, लेकिन मुझे तो सोना बनाना था, कीमियागर जो ठहरा।  जारी है……आगे पढें…। 

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