बिड़ला मंदिर की घंटियों की आवाज से नींद खुली, मंदिर की घंटियों की आवाज से नींद का टूटना, अच्छा लग रहा था। कमरे की पिछली खिड़की से रोशनी आ रही थी। मच्छर न होने के कारण रात को चैन की नींद आयी। रात चैन की नींद आए तो आने वाली सुबह खुबसूरत हो जाती है, थकान उतरने के बाद की ताजगी चाय की भाप की खुश्बू के साथ बढ जाती है। पंकज तैयार हो रहा था, हमें आज घर की ओर चलना है, नौतनवा एक्सप्रेस सवा दो बजे मिलेगी, जो हमें सीधे ही अयोध्या से रायपुर तक पहुंचा देगी। पंकज की इच्छा अयोध्या में घुमने की थी, मेरे मन में रुम चेक आऊट कर सामान सहित सायबर कैफ़े में बैठने की। जीत पंकज के ईरादों की ही हुई, हम स्नान कर के पुन: अयोध्या की गलियों का खाक छानने निकल पड़े। कल हमने अयोध्या शोध संस्थान का बोर्ड एक जगह लगे देखा था। पंकज भी वहीं जाना चाहता था।
रास्ते में हमें एक महल दिखाई दिया, इस महल का सिंह द्वारा बड़े की कलात्मक रुप से बनाया गया था। कैमरे के लैंस में सिंह द्वार का त्रिआयामी स्वरुप दिख रहा था। सिंहद्वार पर काई जम चुकी है, लगता है बरसों से साफ़ सफ़ाई और चूना पुताई नहीं हुई है, एक घड़ी भी सिंह द्वार पर लगी है। घड़ी अभी बंद है, लेकिन इसे देख कर लगता है कि इसकी रौनक किसी जमाने में रही होगी। जब अयोध्या नगरी को इससे ही समय की सूचना मिलती होगी। यह महल किसका है, इसका मुझे पता नहीं था और इसके विषय में सुना भी नहीं था, लेकिन इस महल का प्रांगण काफ़ी बड़ा है तथा भीतर रिहायश भी है। महल के सिंहद्वार के सामने खैनी घिसते हुए युपी पुलिस के नौजवान मिले। पूछने पर उन्होने बताया कि यह "ददुवा राजा" का महल है, हमें तो बस इतना ही पता है। हमें भी इसके विषय में अधिक जानकारी देने वाला कोई नहीं मिला। (अगर किसी ब्लॉगर मित्र को इसके विषय में जानकारी है तो टिप्पणी के माध्यम से अवगत कराएं)
ददुवा राजा के महल से हम अयोध्या शोध संस्थान की ओर चल पड़े, हमें पता चला था कि यह 11 बजे खुलता है। हम भी 11 बजे ही वहाँ पहुंचे, पोर्च में दो सज्जन धूप सेक रहे थे, हमने उनसे पूछा कि - शोध संस्थान के विषय में जानकारी लेनी है तो उन्होने भीतर जाने का ईशारा कर दिया। भीतर पहुंचे तो संग्रहालय और पुस्तकालय दिखाई दिया। पुस्तकालय में कुछ लोग अखबार पढ रहे थे और कुछ लोग अपने मतलब की किताबें मनन कर रहे थे (बांचने की सुविधा नहीं है:) एक महिला झाड़ू लगा रही थी, पंकज ने एक मुर्ती की फ़ोटो खींचनी चाही तो उसने चिल्ला कर कहा -" फ़ोटु खींचना मना है, जानते नहीं का, आप काहे फ़ोटो ले रहे हैं?" शायद पंकज नहीं जानता था। वैसे सभी जगह के संग्रहालयों में चित्र लेना मना है, चित्र लेने के लिए संग्रहालय के निदेशक या इंचार्ज की अनुमति की आवश्यकता होती है। भीतर पहुंचने पर संग्रहालय के इंचार्ज मानस तिवारी जी से भेंट हुई। उनसे संग्रहालय और शोध संस्थान के विषय में विस्तार से चर्चा हुई।
चर्चा के दौरान उन्होने बताया कि इस भवन में तीन ईकाइ हैं, 1- राम कथा शोध संस्थान, 2- संग्रहालय, 3- पुस्तकालय। यहाँ पर उत्त्खनन में पाई जाने वाली मुर्तियों का पंजीकरण किया जाता है इसके साथ ही उनका संरक्षण एंव दस्तावेजीकरण भी किया जाता है। रामकथा से संबंधित शोध सामग्री, पाण्डुलिपियाँ, वैदिक संस्कृत साहित्य यहाँ के पुस्तकालय में उपलब्ध हैं जिसका उपयोग शोध के लिए होता है। इस संस्थान की अयोध्या में शुरुवात 1988 में हुई थी और इसका मुख्य उद्देश्य राम के संदर्भ में मिलने वाली सभी सामग्रियों का संरक्षण, दस्तावेजीकरण, एवं प्रदर्शन करना है। समय समय पर यहां कार्यशालाओं का भी आयोजन किया जाता है। विश्व के 22 देशों में रामकथा का प्रचार प्रसार हैं। विदेशों से प्राप्त रामकथा संदर्भ सामग्री भी यहां उपलब्ध है, कम्बोडियाई रामायण के पात्रों का भी यहाँ प्रदर्शन किया गया है।
महत्वपुर्ण बात यह है कि विगत साढे छ: वर्षों से यहाँ प्रतिदिन अनवरत राम लीला का आयोजन हो रहा है। राम लीला नित शाम 6 से9 बजे तक होती है। इसकी जानकारी हमें नहीं थी अन्यथा रामलीला का आनंद लेते। मानस तिवारी ने बताया कि सम्पुर्ण भारत से साल भर के लिए रामली्ला मंडलियों को बुक कर लिया जाता है। एक मंडली 15 दिनों तक अपनी प्रस्तूति देती है। राम जन्म से लेकर राज्याभिषेक तक राम लीला का प्रदर्शन होता है। सतना की रामलीलाओं की उन्होने काफ़ी बड़ाई की। छत्तीसगढ से शायद ही किसी राम लीला मंडली ने अयोध्या में अपना प्रदर्शन किया होगा। रामलीला मंडलियों को प्रदर्शन करने का मेहनताना प्रतिदिन 5000 रुपए दिए जाता हैं। यह एक अच्छा प्रयास लगा। लेकिन इसकी जानकारी बाहर से आने वाले दर्शनार्थियों को होनी चाहिए। इसके प्रचार प्रसार के लिए स्टेशन एवं बस स्टैंड में फ़्लेक्स बेनर लगाए जाने चाहिएं।
संग्रहालय में शुंग एवं कुषाण काल के पुरावशेष प्रदर्शित हैं। राम जन्म भूमि के उत्खनन से प्राप्त तीनों चरणो के पुरावशेष भी हैं। यहां राम वन गमन मार्ग की चित्रावलियाँ प्रदर्शित की गयी है। इन चित्रों भगवान ने जहां भी गए हैं उसे दिखाया गया है। मानस तिवारी ने बताया कि दिल्ली के रामअवतार शर्मा जी ने इस पर बहुत काम किया है। भगवान राम की दो यात्राओं का जिक्र उन्होने अपनी प्रदर्शनी में किया है। 1- विश्वामित्र के साथ जनकपुर जाकर धनुष यज्ञ से लौटने तक, 2- 14 वर्ष के वन गमन एवं लंका विजय करने तक। रामअवतार शर्मा जी ने सभी प्रदेशों से गुजरते हुए यहां की मिट्टी एकत्र कर उससे राम चरण चिन्ह बनाकर स्थापित किए हैं। मानस तिवारी ने हमें संग्रहालय के बाहर लगी मुर्तियों एवं चित्रों की फ़ोटो लेने की छूट दे दी। हमने कुछ चित्र लिए। उन्होने आगंतुक पुस्तिका में मुझे अपने विचार दर्ज करने कहा। मैने भी आधा पृष्ठ टीप दिया और हम वापस बिड़ला धर्मशाला की ओर चले। मैं सायबर कैफ़े से मेल चेक करने लगा और पंकज गायत्री मंदिर की ओर चला गया।
1 बजे पंकज वापस आया, हमने धर्मशाला का कमरा छोड़ा 150 - रुपए प्रतिदिन के हिसाब से दक्षि्णा जमा कराई, मैनेजर कुछ काईयाँ किस्म का लगा, सबसे 100 रुपए ले रहा था और हमसे 150 सौ रुपए लिए, एवं उसकी रसीद भी नहीं दी। जय बिड़ला से्ठ की, पता नहीं कितने ऐसे ही पल रहे हैं भगवत कृपा से। हम अपना सामान लेकर 11 नम्बर की सवारी से स्टेशन चल पड़े, हमारे अन्य साथी भी ऑटो से पहुंच रहे थे। चौरसिया जी स्टेशन के बाहर खड़े होकर किसी भुले बिसरे को ढूंढ रहे थे। नौतनवा एक्सप्रेस थोड़ी विलंब से आई, लेकिन सही आई, अयोध्या में मात्र 2 मिनट का ही ठहराव है, इतने कम समय में सवा सौ सवारियों का मय सामान चढना कमाल ही है। ट्रेन चलते ही किसी ने ट्रेन की हवा खोल दी, गाड़ी फ़िर रुक गयी, जो न चढे होगें वो भी चढ लिए। अयोध्या नगरी को प्रणाम कर एवं स्वागत सत्कार करने वालों को धन्यवाद देकर हम चल पड़े अपने गंतव्य की ओर।
भजन मंडली ने भजन गाने शुरु कर दिए। हम भी साथ में रम गए, बंछोर जी गाने लगे "हमने आंगन नहीं बुहारा, कैसे आएगें सांवरिया" आंगन बुहारने के बाद निमंत्रण देना था सांवरिया को, पहले ही दे आए अब भुगतो। बंछोर जी की बेटी ने भी एक दो भजन गाए। समय कटने लगा सिमरन के साथ। तभी एक छोटा सा बच्चा भी अपनी माँ से पीछा छुड़ाकर मेरे पास पहुंचा और गोदी में बैठने के लिए हाथ बढाए, कमाल हो गया भाई, यहाँ तो मुहल्ले के सारे बच्चे मेरी गाड़ी की आवाज सुनकर घर के भीतर घुस जाते हैं। इस बच्चे ने बड़ी हिम्मत की। वह भी भजन सुनने लगा और डफ़ली की ताल में मुड़ हिलाने लगा। काफ़ी देर तक मेरी गोद में बैठा रहा, अधिक देर होने पर बच्चे को उसकी माँ के पास छोड़कर आया। बच्चे भगवान का रुप होते हैं, निश्छल और निर्विकार। स्वामी जी टिकिट चेक कराते घूम रहे थे। नौतनवा एक्सप्रेस से मैं पहले भी अयोध्या आ चुका हूँ, छत्तीसगढ से यही एक मात्र गाड़ी है जो अयोध्या पहुंचाती है।
सुबह पेंड्रारोड़ के आस-पास नींद खुली। स्वामी जी मौन थे, बस हाथ और उंगली के ईशारे से काम चला रहे थे। दुनिया चाँद पर पहुंच कर मंगल पर जाने की तैयारी कर रही है और ये पुन: पाषाण युग में जा रहे हैं। इनकी कथा तो अकथ है अगर लिखने लगुं तो दो चार पुस्तकें लिखी जा सकती है। जब से मुड़ मुड़ाए हैं तब से ज्ञान का सागर ही उमड़ आया है। साबुन एवं शेविंग क्रीम का उपयोग नहीं करते। पैंट-पैजामा की जगह धोती पहनकर घुमते हैं। शेविंग क्रीम की जगह छाछ का उपयोग करते हैं। सप्ताह में दो दिन अस्वाद भोजन करते हैं। प्रतिदिन आठ बजे तक मौन रहते हैं। बीमार होने पर एलोपैथिक दवाई का उपयोग नहीं करते और जब कहीं माईक मिल जाता है तो बस मत पूछिए, सुनने वाला थककर सो जाएगा ये चुप नहीं होते, बिजली बंद करने पर भी बिना माईक के चालु रहते हैं। निराली ही आत्मा है। सुबह सुबह भाभी जी ने इन्हे खड़का दिया "हमें ये सब ढोंग धतुरा पसंद नहीं है, जैसे थे वैसे ही रहिए" अब कहां से वैसे रहेगें, आपने तो इन्हे कहीं का नहीं छोड़ा, जब ये सब सांसारिक बुराईयों को छोड़ चुके हैं तो कह रही हैं कि पहले जैसे नहीं रहे, बदल गए हैं, मैने भाभी जी से कहा।
बिलासपुर पहुचने पर स्टेशन पर नाश्ता किया, इडली का ठेला लगा था, साथ ही उसने ब्रेड आमलेट भी रखा था, स्वामी जी आमलेट उठाकर ठेले वाले पूछने लगे, ये क्या है? मुझे हँसी आ रही थी। ठेले वाले के बताने पर उन्होने तीन बार हाथ धोए और एक बार मुंह धोया। "राम राम ये सब भी रखते हैं, शाकाहारी के साथ।" अरविंद झा भी पहुंच गए स्टेशन पर, उनके साथ चाय पीकर गपशप होने लगी। बहुत दिनों में मुलाकात हुई उनसे। जब हम बिलासपुर आने की सोचते हैं तो ये दरभंगा पहुंच जाते हैं। स्वामी जी एक मंडली को प्रवचन दे रहे थे तम्बाखु, शराब, गुड़ाखु एवं अन्य नशा करने वाली वस्तुओं का प्रयोग नहीं करना चाहिए। इससे शारीरिक, मानसिक एवं आर्थिक हानि होती है। तेजराम, संतोष, इत्यादि प्रवचन सुन रहे थे, अरविंद ने भी हां में हां मिलाई।
फ़ोटो गुगल से साभार |
स्वामी जी के पीठ फ़ेरते ही, तेजराम ने कहा कि-"सुनो सबकी करो अपने मन की, ओखर कहे ले थोड़ी छूट जाही, हमर मन के बात सुन डरेन ओखरो। मुझे तेजराम की कमीनीपतीं पर हंसी आ रही थी, स्वामी जी का पूरा एक घंटा खराब करवा दिया।ट्रेन चल पड़ी, अरविंद से विदा ली, शीघ्र ही फ़िर मिलने का वादा किया, रायपुर स्टेशन पहुंच चुके थे। सभी ने अपने-अपने घर जाने की व्यवस्था कर ली थी। मैं और गिलहरे गुरुजी सिटी बस में सवार होकर जोरा के लिए चल पड़े, भगवान को धन्यवाद दिया, सवा सौं लोगों के साथ 9 दिन की यात्रा करके सही सलामत घर पहुंच गए, कहीं बीमारी, हारी, चोरी, चकारी नहीं हुई, किसी की शारीरिक और मानसिक हानि नहीं हुई। सभी स्वस्थ और सानंद अपने परिजनों से मिल रहे थे। जोरा से हम अपनी गाड़ी लेकर घर पहुंचे।नेट शुरु करते ही सूचना मिली कि बाला साहब ठाकरे की पोती का विवाह हो गया है।
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