मंगलवार, 27 जुलाई 2010

बिना लकड़ी और लोहे की छत---यात्रा-4

 अनुसंधान केन्द्र का रास्ता
चिखली में रुकने से से हमारा पूरा कार्यक्रम चौपट हो गया और वापस लौटने लगे। चिखली अगर नहीं रुकते तो हम रात तक मुंबई पहुंच चुके होते। लेकिन शायद कुछ ऐसा था जो हमें आगे बढने से रोक रहा था। वापस जब वर्धा पहुंचे तो सुबह हो चुकी थी। मैने कुछ फ़ोटुएं नीरज के कैमरे ली थी,वह नीरज के साथ ही चली गयी। इसलिए नहीं लगा पा रहा हूँ। वर्धा में ग्रामीण अभियांत्रिकी अनुसंधान केन्द्र है, जो कि ग्रामीणों के रहन-सहन को लेकर नवोन्मेष करते रहता है। मैं उसे देखना चाहता था। वर्धा से नागपुर रोड़ पर मुझे उसका बोर्ड दिख गया और मैने सुबह-सुबह ही गाड़ी उधर मोड़ ली। मैने सोच लिया था कि सुबह सुबह तो आफ़िस स्टाफ़ मिलेगा नहीं। कुछ चौकीदार से पूछ लिया जाएगा। सौभाग्य से चौकीदार वहां मिल गया। मैने वहां की अनुसंधानों के विषय में उससे जानकारी ली।
देशी वाटर फ़िल्टर

वर्धा में एक महत्वपूर्ण अनुसंधान कम लागत में घर बनाने के लिए हुआ है। जिसकी मुझे जानकारी थी। इस विषय पर मैं कुछ अधिक जानकारी लेना चाहता था। इस तरह के मकान में छत बिना लगड़ी और लोहे के सहारे बनाई जाती है और छत भी बहुत मजबूत होती है चाहे उसके उपर हाथी चढालिया जाए।इस तरह की तकनीकि मैं कई वर्षों से जानना चाहता था लेकिन वर्धा जाने का समय नहीं मिल रहा था या शायद उचित कारण नहीं था। यहां इस तकनीक से बनाया हुआ एक बहुत बढा सभागार है। जो बहुत ही सुंदर बना है। चौकीदार ने मुझे वह सभागार खोल कर दिखाया। मैने उसके कुछ चित्र लिए। लगा कि यहां आना सार्थक हुआ। यहां पर एक बहुत ही सस्ता वाटर फ़िल्टर भी बनाया जाता है जो जल को कीटाणु रहित करता है। यह वाटर फ़िल्टर सिर्फ़ 300रुपए का है। कुल मिलाकर देशी इलाज है लेकिन कारगर है। मैने इसका चित्र लिया।
सभागार-बिना लकड़ी,लोहे की छत

चाक पर काम करने वाले कुम्हार वर्तमान में बेरोजगारी के कगार पर हैं। क्योंकि अब घरों में लोग कवेलु लगाना पसंद नहीं करते। थोड़े से और रुपयों का इंतजाम करके कांक्रीट की ही छत बनाना चाहते हैं जिससे जीवन भर का आराम हो जाए। कवेलुओं हर साल एक बरसात पड़ने के बाद फ़िर से पलटना पड़ता है। बिल्ली आदि के कूदने से कवेलु टूट जाते हैं और वहां पानी का रिसाव होता है। कवेलु की छत बनाना भी एक कला है। गाँव में कवेलु की छत बनाने का काम कुछ विशेष लोग ही करते हैं। मिट्टी के घड़ों की जगह घर में फ़्रीज आ गए हैं, जिनकी थोड़ी बहुत ज्यादा आय है वह किश्तों में फ़्रीज ले लेता है। अगर आय नहीं है तो शादी में दहेज में मांग लेता है। इस तरह अब घड़ों का इस्तेमाल बहुत कम हो रहा है। दीवाली में भी दिए वर्तमान में चीन से आ रहे हैं। जिसमें मोम जमाकर बत्ती लगा दी जाती है। अब कौन तेल और बत्ती लगाने का झंझट रखे। सीधा उन्ही रेड़ीमेट दियों का उपयोग कर लेता है। इस तरह कुम्हारों का काम खत्म होता जा रहा है।
कवेलु और छत का डिजाईन

इस छत को बनाने के लिए प्रथम आवश्यक्ता कुम्हारों की है। क्योंकि इसके कवेले चाक पर ही बनते हैं। कोई एक फ़ुट लम्बाई के शंकु आकार के और फ़िर इन्हे भट्टी की आंच में अच्छी तरह पकाया जाता है। फ़िर छत पर इनकी मेहराब बनाई जाती है। एक मेहराब की चौड़ाई 12फ़ुट तक हो सकती है जो दीवारों पर टिकी होती है। पहले चारों तरफ़ दीवार बनाकर उसे लगभग 8फ़ुट की उंचाई दी जाती है। उस पर चारों तरफ़ एक कांक्रीट का बीम डाला जाता है। फ़िर उस पर अर्ध चंद्राकर सेंट्रिंग बांधी जाती है। उस सेंट्रिंग के सहारे शंकुआकार के कवेलुओं को एक दुसरे में फ़ंसाया जाता है। इस तरह एक एक पंक्ति तैयार की जाती है।फ़िर पंक्तियों के बीच में सीमेंट भरकर छत पर सींमेंट का प्लास्टर कर दिया जाता है। आप इसे खुबसुरत रुप देने के लिए टूटी हुई सिरेमिक टाईल्स भी चिपका सकते हैं। इससे बनी छत पर्यावरण की दृष्टि से बहुत अच्छी है और लकड़ी,लोहे की बचत हो जाती है। मजबूती में कोई कमी नहीं है भवन भी बहुत सुदर दिखाई देता है। छत का पूरा वजन मेहराबों से होते हुए दीवालों पर आ जाता है। इसका एक महत्वपूर्ण पहलु यह है कि कुम्हारों को काम मिलेगा और कम लागत में अच्छी छत का निर्माण हो जाएगा।
घाट

अब यहां से निकल कर हम नागपुर की ओर चल पड़े। लगभग 9 बजे नागपुर में प्रवेश कर चुके थे। रात भर गाड़ी चलाने से थकान भी लग रही थी। अब जल्दी से कोई होटल देख कर उसमें सोना चाहते थे। सेंट्रल एवेन्यु नागपुर में रेल्वे स्टेशन के पास बहुत से होटल हैं। पिछले बार हम प्रेशर के चक्कर में गलत होटल में फ़ंस गए। इस बार उससे थोड़ा आगे पैराडाईज होटल था। वहां जाकर किराया पूछने पर उसने नान एसी कूलर वाला कमरा 750 रुपए का बताया। साथ में 12%टैक्स भी। हमने कमरा देखा तो अमीर होटल से बहुत अच्छा था। पिछली गलती का अहसास हुआ। बाथरुम अच्छा बड़ा था। होटल में खाने का रेस्टोरेंट भी था, लेकिन रुम सर्विस के नाम पर 10% चार्ज अलग से लिया जाता है।

नीरज और विक्की तो पड़ते ही सो गए। मैं लग गया लैपटाप पर। मैने एक पोस्ट भी लगाई थी कि अगर कोई हिन्दी ब्लागर नागपुर में है तो कृपया सम्पर्क करे। लेकिन वहां मुझे कोई भी हिन्दी ब्लागर नहीं मिला। इतने दिनों की ब्लागिंग में शायद ही किसी का नागपुर का प्रोफ़ाईल देखा हो। अगर देखा होता तो अवश्य ही याद आ जाता। कुछ टिप्पणियां मार कर मै स्नान कर के सो गया। आगे की कहानी बाकी है दोस्त.........

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6 टिप्‍पणियां:

  1. यात्रा वर्णन के साथ अच्छी जानकारी दी है...

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  2. चकाचौंध लिखे है सिरिमान जी

    एतना कइसे फ़िर लेते हैं आप

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  3. बिना लकड़ी,लोहे की छत वाले कम लागत के भवन के संबंध में अच्‍छी जानकारी मिली भाई साहब. धन्‍यवाद.
    नागपुर में लोकप्रिय कवि तुषार जोशी हिन्‍दी ब्‍लॉगर हुआ करते थे अभी ब्‍लॉगजगत में सक्रिय हैं कि नहीं पता नहीं है।

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  4. yah jankaree achchi lagi. maine bhee appropriate technology ke witaran ka kam kiya hai . apnee sthaneey cheejen istemal kar ke achchi se achchi jankaree uplabdh karane ke liye abhar.

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  5. ललित जी, नागपुर में हिंदी ब्लागर एक मैं हूं और एक नवीन अग्रवाल जी हैं. और कोई मुझे अभी तक नहीं मिला.

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  6. नागपुर में हिंदी ब्लागिंग में मेरे अलावा श्री नवीन अग्रवाल जी हैं.

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