अथ राष्ट्रीय ब्लागर कार्यशाला जबलपुर कथा:-- जाबाला की नगरी जबलपुर जहां नित्य ही नर्मदे हर का उद्घोष होता है वहां ब्लागिंग पर राष्ट्रीय कार्यशाला के आयोजन का संदेश मुझे समीर दादा और गिरीश दादा से प्राप्त हुआ। उस समय मैं अत्यावश्यक कार्य उत्तर भारत से दक्षिण भारत की यात्रा पर था। मैने वचन दिया कि किसी भी हालत में जिन्दा या मुर्दा कार्यशाला में शामिल होने के लिए समय पर पहुंच जाऊंगा। 29 तारीख की रात 15 दिनों की लगातार यात्रा के बाद घर पहुंचा और 30 तारीख की रात को अवधिया जी को साथ लेकर अमरकंटक एक्सप्रेस से जबलपुर रवाना हो गया।
बिलासपुर स्टेशन में अरविंद झा जी तैनात थे, वे अपनी नयी कृति "माँ ने कहा था" कि कुछ प्रतियां लेकर उपस्थित थे। इनकी इच्छा तो जबलपुर के कार्यक्रम में उपस्थित होने की तो बहुत थी पर विभागीय व्यस्तता की वजह से नहीं जा पा रहे थे। अवधिया जी तो रात होते ही सोम के नाथ हो गए और हम धान के देश में जाड़े से ठिठुरते रहे। अरविंद के आने से सर्दी में कुछ गर्मी का अहसास हुआ। इनके साथ शंकर पांडे भी थे। गाड़ी ने सीटी बजाई और बिलासपुर से अब हम जबलपुर रवाना हो चुके थे। रायपुर की अपेक्षा जबलपुर में कुछ जाड़े का असर होने लगा था यह रास्ते में महसूस हुआ। हमारी ट्रेन एक घंटा विलंब से जबलपुर पहुंची।
पूर्व में समाचार मिल चुका था कि हमें होटल सुर्या के कमरा नम्बर 120 में बुक होना है। भोर में ही ऑटो से होटल पहुंचे। कुछ देर के विश्राम के पश्चात स्नानादि से निवृत होकर मेजबानों का इंतजार करने लगे।थोड़ी देर के बाद गिरीश भाई का फ़ोन आया और वे गुनगुनाए "ठाड़े रहियो ओ बांके यार"। ओ छोरे तेरे क्या कहने? मजा आ गया, अवधिया जी ने उठकर आईना देखा, हमने भी सुर मिलाया। शायद गिरीश दादा ने मजाक किया हो। पता चला गया कि बांकपन तो अभी भी बाकी है।
दोपहर को गिरीश दादा सशरीर उपस्थित हो गए और अवधिया जी के साथ गहन विचार विमर्श में लीन हो गए। दोपहर का भोजन हमने साथ में लिया। शाम 5 बजे जबलपुर बी एस एन एल रीजन (सी जी एम) मुख्य महाप्रबंधक जमुना प्रसाद जी ने अपना रथ भेज दिया हमारे लाने। हम उनसे मिलने चल पड़े। कई महीनों के पश्चात आमने-सामने की मुलाकातों ने कई यादें ताजा कर दी। एक घंटे के पश्चात कार्यशाला प्रारंभ होने वाली थी। जमुना प्रसाद जी स्वयं हमें होटल तक छोड़ कर गए। उनकी सहृदयता के हम आभारी हैं।
तभी दीपक (डी पी ओ) रेल्वे जबलपुर का भी फ़ोन आ गया कि आगामी शाम उनके घर पर ही रहना है। मैने अगले दिन दीपक के घर पहुंचने का वादा किया। हैदराबादी विजय सतपती भी पहुंच चुके थे। फ़िर धीरे धीरे सभी आ गए। कार्यशाला प्रारंभ हूई। जिसकी अधिकारिक रपट मिस फ़िट पर लग चुकी है। कार्यशाला की समाप्ति के पश्चात कमरा नम्बर 120 में लाल और बवाल सहित कुछ मित्रों के साथ हमने लाल की गजल और बवाल की गायकी का रसपान किया। नि:संदेह बवाल काफ़ी अच्छा गाते हैं, हारमोनियम पहले से ही तैयार था। बस अब सुरों की महफ़िल जम गयी। अवधिया जी को गुजरा जमाना याद आ गया, आईना जो देखे थे। उन्होने इतने पुराने गीतों की फ़रमाईश कर दी कि जो हम बरसों से भूल बैठे थे। लेकिन बवाल साहब के भी क्या कहने उन्होने निराश नहीं किया और अवधिया जी को वह गीत सुना ही दिया। मैं तो उसके बोल भी भूल गया हूँ।
कार्य शाला में अविनाश जी और खुशदीप भाई भी फ़ोन के माध्यम से उपस्थित थे,विजय सतपती भी पुराने गीत अच्छे से गुनगुना लेते हैं। कुछ गीतों की याद ये भी करते रहे। रात 2 बजे तक शमा जलते रही और बवाल होते रहा। लाल भी मजे से सुनते रहे। हम इनका रचना पाठ सुनने से वंचित रह गए। जब ये रायपुर पहुंचेगे तो छोड़ेंगे नहीं सुन कर ही मानेंगे। रात महेन्द्र मिसिर जी ने बता ही दिया था कि सुबह धुंवाधार जल प्रपात एवं भेड़ाघाट जाना है एवं चेताया भी था कि सुबह 9 बजे तैयार हो जाना है। अब सभी ने गले लग कर विदा ली और हम भी निद्रा रानी के आगोश में चले गए।
जारी है............
आपके साथ सोम नाथ होने मे खतरा है खुद का नाम नही बताते और साथी का पर्दा फ़ाश
जवाब देंहटाएंयाद तो ताजा ही है अब भी उस शाम की.
जवाब देंहटाएंblog par lambe antral ke baad hamsafar banne ke liye badhai.
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