19 तारीख को एक विवाह समारोह में शामिल होकर सुबह घर पहुंचा, 2 बजे नीरज का फ़ोन आया कि भैया घुमने चलते हैं। मैने कहा आ जाओ,चलते हैं। कहां जाना है यह निश्चित नहीं था। रात 9 बजे नीरज घर पहुंचा। साथ में विक्की भी था। अब हमने चर्चा की, कहाँ जाना चाहिए? नीरज ने कहा कलकत्ता चलते हैं। मैने कहा कि पूरी चलते हैं वहां इ सी आर पकड़कर सीधा समुद्र के किनारे-किनारे पाण्डीचेरी पहुंचते हैं। बढिया मौसम है बरसात शुरु हो चु्की है। समुद्र किनारे की इस यात्रा में मजा आ जाएगा। लेकिन बात कुछ जमी नहीं। तब हमने तय किया कि पहले नागपुर चलते हैं और वहां होटल में बैठकर कार्यक्रम तय करते हैं कि किधर चलना? रात खाना खाकर हम चल पड़े नागपुर की ओर गाड़ी मैं ड्राईव कर रहा था। सामने की सीट पर नीरज जाग रहा था, पीछे की सीट पर दो बीयर हलक से उतार कर विक्की सो रहा था।
रायपुर पहुंचने पर मैने सोचा कि अन्ना(देवी शंकर अय्यर) को भी साथ ले लिया जाए। फ़ोन करने पर उन्होने बताया कि उनके पापा घर में नहीं है और मम्मी अकेली है उनकी भी उमर 85साल तो होगी ही। इसलिए अन्ना का रुकना जरुरी है। जाना ठीक नहीं। इसलिए हमने रायपुर में ब्रेक नहीं लि्या। नागपुर को लक्ष्य करके चलते रहे। चरोदा पहुंचने पर अन्ना का फ़ोन आया कि हम कहां तक पहुंचे हैं। मैने बताया कि चरोदा पार कर चुके हैं। मुझे लगा कि अन्ना के मन में आया होगा कि साथ चलते तो अच्छा रहता, लेकिन मन की मन मे रह गयी। उन्हे पहले ही निर्णय ले लेना था।
जैसे ही हमने महाराष्ट्र में प्रवेश किया वैसे ही मुसलाधार बारिश ने हमारा स्वागत कि्या। इतनी जोरदार बारिश कि 5फ़ुट सामने की सड़क नहीं दिख रही थी। लेकिन मैने गाड़ी रोकी नहीं धीरे चलते रहे। सड़क में भी निर्माण के कारण इतने डायवर्शन थे कि गाड़ी चलाना भी मुस्किल हो गया था। 200किलो मीटर लगातार चलने के बाद एक ढाबे में मैने गाड़ी रोकी लगभग सुबह के 4बज रहे थे। भंडारा पार कर चुके थे। यहां हमने गरमा-गरम चाय पी और ड्रायविंग सीट नीरज ने संभाल ली। अब मुझे नींद आ रही थी। मेरे सोने से नीरज को परेशानी न हो इसलिए मैने काला चश्मा निकाल कर लगा लिया। जिससे मेरी बंद आंखे उसे दिखाई न दे और वह समझता रहे कि मैं जाग रहा हूँ, वह गाड़ी चलाता रहे।
सुबह 6बजे हम नागपुर में प्रवेश कर रहे थे। तभी एक चेकपोस्ट पर गाड़ियों की चेकिंग हो रही थी। हमारी गाड़ी भी रोकी गयी। दो सिपाही सामान चेक करने लगे। यह एक नियम हो चुका है कि जब भी कोई मेहमान कि्सी राज्य में प्रवेश करे,उसकी पूरी खाना तलाशी होनी चाहिए। फ़िर गाड़ी के कागज एवं लायसेंस मंगाया गया। अब नी्रज ने कहा कि भैया मैं तो गाड़ी के कागजात भूल गया हूँ और मेरे तथा विक्की के पास लायसेंस नहीं है। बस! सुनते ही लगा कि भैंस गयी पानी में। निकल लिए यात्रा में न गाड़ी के कागजात और न लायसेंस । तो नीरज कहने लगा कि आपके पास तो लायसेंस है, आप वह दिखा दिजिए। हवलदार को मैने अपना लायसेंस दिखाया तो वह कहने लगा कि जो चला रहा था उसका लायसेंस चाहिए। कुल मिला कर "प्रथम ग्रासे मक्षिका पात:" याने बिना मुंडन के नहीं निकल सकते थे। वो भी सु्बह सुबह जब बोहनी का टैम हो और महाराष्ट्र पुलिस ऐसे ही छोड़ दे। वे1000 रुपए से शुरु हुए और हम 100 रुपए से, आधे घंटे में 300 पर बात जम गयी। उस पुलिस वाले ने एक फ़र्जी चालान बनाया, उसमें राशि नहीं लिखी। हमारा दस्तखत कराया और जाते हुए कहा कि अब जिसके पास लायसेंस है वही गाड़ी चलाए शहर में। बाहर निकलने के बाद कोई भी चला सकता है।
अब गाड़ी फ़िर हमारे हवाले सुबह सुबह सरकारी पंडो की भेंट दक्षिणा के चक्कर में समय तो खराब हुआ ही मुड़ भी खराब हो गया था। हमने तय किया था किसी भी रिश्तेदार को खबर नहीं करना है। अब होटल ढुंढने लगे क्योंकि प्रेशर सब तरफ़ से था। गांधी बाग में एक होटल मिला, अमीर होटल, हमने काउंटर पर रेंट पूछा तो साधारन डबल बेड रुम के 1250रुपए, 14% टैक्स अलग, कूलर चलाने पर 50 रुपया अलग से लगेगा, रुम मे सर्विस चार्ज 10% अलग से। हम और कोई हो्टल जाने की स्थिति में नहीं थे। इसलिए जो उसने कहा वह मंजूर कर लिया। रुम की बालकनी सड़क पर खु्लती थी। लेकिन रुम अच्छी स्थिति में नहीं था। नाम जरुर अमीर होटल था लेकिन वहां ऐसी कोई चीज नहीं थी जिससे उसकी अमीरी का पता चलता। तो महाराष्ट्र का टैक्स हमने जमा कर दिया और चाय पीकर सो गए।...................जारी है-आगे पढें।
इस कड़ी में हमारे देश का सामान्य शि(भ्र)ष्टाचार उभर कर आया है.
जवाब देंहटाएंबढिया यात्रा संस्मरण भाई जी, अगली कड़ी का इंतजार है.
जवाब देंहटाएंमक्षिका पात हुआ वह संकेत था कि आगे अब सतर्क रहें। चलने दें यात्रा। कड़ी दर कड़ी पढ़ेंगे अवश्य। आभार।
जवाब देंहटाएंbahut acchha, majedaar yaatra prasang ke sath-sath desh ki saamaanya samasyao ki or bhi aapne dhyaan khichaa. pando ke paakhand kaa sahi chitran. hotel ki mahagaai kaa bhi sahi vishleshan. vaah....सरकारी पंडो की भेंट दक्षिणा के चक्कर में समय तो खराब हुआ ही मुड़ भी खराब हो गया था। हमने तय किया था किसी भी रिश्तेदार को खबर नहीं करना है। अब होटल ढुंढने लगे क्योंकि प्रेशर सब तरफ़ से था। गांधी बाग में एक होटल मिला, अमीर होटल, हमने काउंटर पर रेंट पूछा तो साधारन डबल बेड रुम के 1250रुपए, 14% टैक्स अलग, कूलर चलाने पर 50 रुपया अलग से लगेगा, रुम मे सर्विस चार्ज 10% अलग से।....bikul satik our vyavahaarik.
जवाब देंहटाएं... बहुत खूब!!!
जवाब देंहटाएंAgli kadi ka intzaar hai.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंललित भाई, यथार्थ के बेहद करीब ला दिया आपने। इस दास्तान को चलाए रखिए।
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पॉल बाबा की जादुई शक्ति के राज़।
सावधान, आपकी प्रोफाइल आपके कमेंट्स खा रही है।
बढिया यात्रा संस्मरण। आभार।
जवाब देंहटाएंअक्सर ऐसा होता है । आप सफर का आनंद उठा कर आ रहे हों और पुलिस को ये मंजूर हो ........ तौबा कीजिये। पर आप के आगे की यात्रा शुभ रही होगी ।
जवाब देंहटाएंशानदार यात्रा संस्मरण..अगली कड़ी का इंतजार...
जवाब देंहटाएंललित भाई, इस कड़ी को कृपया जारी रखें, मजा आ गया पढकर।
जवाब देंहटाएंअब होटल ढुंढने लगे क्योंकि प्रेशर सब तरफ़ से था।
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समझ गये कैसा प्रेशर था।
मस्त वृत्तान्त।