शुक्रवार, 23 जुलाई 2010

हमारे यात्रा का तकलीफ़ देह पड़ाव चिखली---यात्रा 2

हाईवे
प्रारंभ से पढें.....,अमीर होटल में बैठकर हमने कार्यक्रम बनाया कि गुजरात की तरफ़ निकला जाए। सौराष्ट्र और बाकी गुजरात देखा जाए। गांधी नगर,कांडला चला जाए। फ़िर उधर से सिल्वासा भी जाया जाए। रात को हमने अलबेला खत्री जी को फ़ोन लगाया तो उन्होने फ़ोन अटेंड नहीं किया। कुछ देर बाद उनका फ़ोन आया। उन्होने बताया कि वे इस हफ़्ते सुरत से बाहर हैं, इसलिए अपनी मुलाकात नहीं हो पाएगी। तभी नीरज के घर से फ़ोन आया और उसने इरादा बदल दिया। कहने लगा कि मुंबई होते हुए गोवा चलते हैं। फ़िर खंडाला पूना होते हुए वापस आ जाएंगे। रात को हमने अब पक्का विचार कर लिया कि आज रात तक कैसे भी हो मुंबई पहुंच जाएंगे। नागपुर से मुंबई लगभग 800किलो मीटर है और हम तैयार थे एक दिन में यह सफ़र करने को। रात एक बजे हमने होटल छोड़ दिया और चल पड़े मुंबई की ओर,आगे गोवा रत्नागिरी,गणपतिपूळे जाने के मंसुबे बांधते हुए। मैं पहले भी इस इलाके में कार से आ चुका था। लेकिन लगभग 10साल बीत जाने के बाद सड़कें और मार्ग पूरा याद नहीं था।
बुलढाणा का घाट-अजंता मार्ग
अमरावती पहुंचे तो दिन निकलने वाला था, उजाला हो रहा था। अमरावती बायपास से अकोला की तरफ़ चल पड़े। रास्ता अच्छा है सड़क एकदम चकाचक। गाड़ी 100-120 के बीच मजे से चल रही थी। अकोला एक होटल में चाय पीने के बाद हम लगभग 7/30 बजे खामगांव पहुंच गए। खामगांव पहुंच कर सोचा कि स्नान खामगांव में किया जाए या चिखली में। चिखली मेरे सालिगराम जी की ससुराल है और मैने सोचा कि यह मुंबई नासिक हाईवे पर ही है। मैने फ़ोन लगाकर सालिगराम जी से पूछा कि खामगांव से चिखली कितनी दूर है? तो उसने कहा एक घंटे का रास्ता है। हमने चिखली में रुक कर नहाने धोने का इरादा बना लिया। खामगांव बायपास पर मुझे एक रोड़ दाईं तरफ़ जाता दिखाई दिया। मैने उस रोड़ पर गाड़ी डाल दी नीरज सोया हुया था। गाड़ी मोड़ते ही देखा कि बाकी गाड़ियों की कानबाई तो दुसरे रोड़ पर जा रही है। मैने गाड़ी बैक करके फ़िर वही रोड़ पकड़ लिया।
घाट से पर्वत दर्शन
एक घंटे हो गये लगातार गाड़ी चलाते। नांदुरा निकल चुका था। मलकापुर आने वाला था। मुंबई लगभग 500 किलोमीटर दिखा रहा था मील का पत्थर। लेकिन चिखली कहीं नहीं आया। एक जगह चिखली खुर्द नाम का गांव दिखा लेकिन वह छोटा था। मतलब जिस चिखली में हमे जाना था वह नहीं था। मैने सड़क पर गाड़ी रोकी, नीरज उठा और मैदान की चला गया। तभी मेरे मोबाईल पर सालिगराम जी का फ़ोन आया कि कहां पहुंचे? जब मैने स्थान बताया तो उसने कहा कि आप गलत रास्ता पकड़ लिए। वापस आना पड़ेगा। मैने कहा कि अब चिखली आना स्थगित करते हैं और सीधा ही मुंबई चलते हैं। अब हम लगभग 150 किलोमीटर आ चुके थे। ऐसा कहकर मैने फ़ोन बंद कर दिया। आगे निकल लिए, फ़िर सलहज जी का फ़ोन आया कि आपको आना ही पड़ेगा। ऐसे नहीं जा सकते। मेरे मना करने पर उनकी माता जी ने फ़ोन करके आने का निवेदन किया। मैने मना कर दिया। नीरज भी वापस जाने के लिए तैयार नहीं था।

घाट का एक मोड़-कार चलाते हुए फ़ोटो ली
कुछ देर में गृहमंत्री जी फ़ोन आ गया और कहा कि आपको जाना ही पड़ेगा, वे कब से चिखली में आपका इंतजार कर रहे हैं। मैने उन्हे भी मना कर दिया और फ़ोन बंद कर दिया। फ़िर सोचा की लौटकर तो घर ही जाना है। फ़ालतु बात खड़ी रह जाएगी जीवन भर के लिए। जब उन्हे फ़ोन करके मुसीबत मोल ले ही ली तो झेल भी लिया जाए। यह सोच कर मैने गाड़ी वापस मोड़ दी। नीरज कहने लगा कि 125किलोमीटर जाना है और फ़िर मुंबई कब पहुंचेगे? बुलढाणा से चिखली होते हुए औरंगाबाद से मुंबई हाइवे है। उस पर चले जाएंगे, अब देर ही सही। सुनकर नीरज को तसल्ली हुयी। नांदुरा से कटे फ़टे रोड़ से हम मोताळा हो्ते हुए 12 बजे चिखली पहुंचे। हमने उन्हे लौटने की खबर नहीं दी थी। बस स्टैंड में फ़ोन करके अनुप को बुलाया और फ़िर उनके घर गए। अब देखकर वो भी भौंचक्के हो गए। मना करने के बाद भी वहां पहुंच कर उन्हे चौंका दिया।

चिखली से विदा होकर औरंगाबाद की ओर
चिखली के विषय में एक बात बताता चलुं कि यहाँ पर पानी की बहुत समस्या है। 10-10दिन में पानी आता है। अगर किसी को पानी की कीमत जानना है और उसके किफ़ायती प्रयोग देखने हैं तो यहां अवश्य आए। सभी लोगों ने अपने घरों के नीचे टैंक बनवा रखे हैं। टैंकर मंगवा कर उसे भरते हैं। नल आता है तो पानी भरने के लिये हाय तौबा मची रहती है। यहां पानी की बहुत तकलीफ़ है। हमने भी पानी का किफ़ायती इस्तेमाल किया। गाड़ी को सर्विसिंग के लिए भेज कर हमने स्नान किया और फ़िर भोजन करके आगे जाने के लिए तैयार हो गए। वे भी बहुत खुश हुए कि हम आ गए। वहीं आगे के सफ़र के विषय में चर्चा की तो चिखली वालों ने कहा कि औरंगाबाद से आगे शनि सिंघनापुर का मंदिर है। वहां आप दर्शन करके आगे जाएं। लगभग 2 बजे हम औरंगाबाद के लिए चल पड़े थे। चिखली हमारे यात्रा का बहुत तकलीफ़ देह पड़ाव बनने वाला था यह हमने नहीं सोचा था। जारी है--आगे पढें
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5 टिप्‍पणियां:

  1. यात्रा संस्मरण तो एकदम जायकेदार है। तीन मुख्य बिंदु आपकी यात्रा मे दिखाई पड़े (1) राह भटक गये थे सो ले दे के मंजिल पाये। लौट के बुद्धू घर को आये। (2) गृह मंत्रालय जो फ़रमाये वही ब्रह्म वाक्य बन जाये और तब तो फिर सबको ना करने के बाद सालिगराम जी के घर अवश्य जाया जाये। भाई ललित एमा कोनो बुराई नई ये। दूनो डहर के रिश्ता ला बने निभाये ल पड़ते। आखिर गोसइनिन मन आके कइसे दाई ददा ले अलग होये के बाद भी ससुराल मा अपन परेम बनाथे। बहुत ही रोचक यात्रा संस्मरण। बधाई। अरे हां सबसे महत्वपूर्ण बात तो पानी बचाने की है। हम सभी को इसका अनुसरण करना चाहिये। भाई आपने सभी तरह से यात्रा मे पानी बचा लिया। "रहिमन पानी राखिये बिन पानी सब सून पानी गये न ऊबरे मोती मानुस चून

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  2. बढ़िया यात्रा संस्मरण चल रहा है. हालांकि १५० किमी बैक करना इतनी लम्बी यात्रा में बड़ा हिम्मत का काम है..आगे इन्तजार है कि आखिर ऐसा क्या हो गुजरा चिखली पड़ाव के कारण...

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  3. हे भगवान! छत्तीसगढ से अपनी गाडी से गुजरात घूमना, वो भी बिना किसी योजना के।
    सोच कर ही हैरान हो रहा हूं।

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  4. @नीरज जाट जी

    हमारी बहुत सारी यात्राएं बिना योजना के ही हुई
    लेकिन जो वाट इस यात्रा की लगी वैसी कभी नहीं लगी:)

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  5. इतना अच्छा लिखते है जी आप, पर पूरा पढ़ने पर लगता है कि आपने हजारों फूंक दिए जबकि ऐसी यात्रा से आप हजारो कमा सकते थे| यात्रा डाट काम जैसी दसों साईट को आप जैसे लोगों की जरूरत है| आप उनके यात्रा प्रतिनिधि बन सकते हैं औत जब उनके पास यात्रियों के प्रश्न आये तो आप से वे उत्तर लेकर आपको पैसे दे सकते हैं| बस ऐसी यात्रा में थोड़ी बारीकी से जानकारी लेते चलिए जैसे आपने कहाँ खाया, उसकी रेटिंग करिए, यदि मेनू हो तो उसकी तस्वीर ले लीजिये, ढाबे के मालिक से इन्त्रव्यूव लेलीजिये| देखिएगा आपको होटल वाले भी छूट देंगे| ललित भाई रेत से सोना बनाने के दिन है और आप घर से पैसे फूंक रहे हैं| ऐसे ही अच्छा लिखते रहिये पर ब्लॉग पर नहीं जहां कुछ नहीं मिलता, उलटे आपके इसी कंटेंट से लोग पैसा बना लेंगे|

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