भटनेर का किला |
भटनेर का किला |
जैसे ही सादुलपुर आया तो किसी ने हमें जगाया, देखा सादुलपुर आ गया, हम सामान समेत ही नींद में ट्रेन के बाहर कूद पड़े। इधर ट्रेन भी चल पड़ी थी। नहीं तो बीकानेर पहुंच कर नींद खुलती। यहां से हमने हनुमानगढ वाली ट्रेन पकड़ी। सुबह 8-9 बजे के आस-पास हनुमानगढ पहुंचे। वहां स्टेशन में उतरे तो सतपाल अंकल पहुंच गए थे, हमे लेने के लिए। उसके बाद हम उनके घर पहुंचे। स्नानादि से कुछ थकान दूर हुई लेकिन नींद आ रही थी। अब इरादा था हनुमानगढ टाउन घुमने का। उस समय टीवीएस50 का चलन था। हीरो मैजेस्टिक के बाद यह एक अच्छी बाईक आई थी। पिकअप भी बहुत बढिया था। यह बाईक मेरे हवाले हो गयी। बस इसी पर मैं घुमता रहा। दो दिन तक पूरा हनुमानगढ शहर घुमा। आगे श्री गंगानगर और सुरत गढ जाने का इरादा था लेकिन समयाभाव के कारण नहीं जा सका।
हनुमानगढ राजस्थान का मुख्य सरहदी जिला है। इसका क्षेत्रफ़ल 9656.09 वर्ग कि.मी. है। यहां कपास का अच्छा व्यवसाय होता है। मैने जगह-जगह कपास के ढेर लगे देखे। मैने सज्जन गढ का किला भी देखा। इस यात्रा के चित्र मेरे पास उपलब्ध नहीं हैं, बच्चे कहीं रख कर भूल गए है, मिलने लगाऊंगा, हनुमानगढ में स्थित एक किला "भटनेर का किला" के नाम से जाना जाता है। यह प्राचीन किला घाघर नदी के किनारे पर स्थित है, जिसे जैसलमेर के राजा भाटी के बेटे भुपत ने सन् 295 में बनवाया था।सन् १८०५ में बीकानेर के महाराजा सुरत सिंह ने राजा भाटी को हराने के बाद भटनेर पर कब्जा कर लिया। उनकी जीत मंगलवार के दिन हुई थे।(भगवान"हनुमान" का दिन), इस कारण से भटनेर का नाम हनुमानगढ़ कर दिया गया।
पहले दिन यहां आया तो शाम हो चुकी थी,इसलिए पुरा नहीं घुम पाया इसलिए दुसरे दिन फ़िर सुबह आया और पुरा किला देखा। मुझे प्राचीन इमारतें देखने का बहुत शौक है। राजस्थान में हर शहर में कोइ न कोई किला है और हवेली है। कई जगह तो ये अच्छी तरह संरक्षित हैं कई जगह इनकी देख-भाल न होने से खंडहर में तब्दील हो गयी हैं। धरोहरों का नाश हो रहा है। इनका पूर्ण संरक्षण होना चाहिए। अब हनुमानगढ से वापसी का समय हो चुका था। रात को फ़िर वही गाड़ी पकड़नी थी।रात को लगभग 10 बजे हम स्टेशन पहुंचे तो बहुत सर्दी हो चुकी थी। ठंड ज्यादा लग रही थी। बहुत सारे फ़ौजी भी बाडर से छुट्टियां मनाने अपने घर जा रहे थे। स्टेशन फ़ौजियों से भरा हुआ था। हमने सोचा चलो अब इनके साथ बातचीत करते सफ़र कट जाएगा।
रेलवई टेसन |
ट्रेन आ चुकी थी। देखा कि लोगों ने दरवाजे लॉक कर रखे हैं। आवाज देने और दरवाजा ठोकने के बाद भी कोई खोलने को तैयार नहीं है। सब आराम से एक-एक सीट पकड़ कर कंबल रजाई ओढे सोये हैं। ट्रेन का छुटने का समय हो रहा था। सारे फ़ौजी भी हलाकान थे हम भी अपना सामान लिए खड़े थे कि कोई दरवाजा खोले तो अंदर घुसें। फ़िर एक फ़ौजी बोला-"दरवाजा तोड़ डालो, और इन्हे थोड़ा सुधार भी दो। बस फ़िर क्या था, फ़ौजियों के बूटों की ठोकर और कंधें के धक्कों से लॉक टूट गया। अंदर घुसते ही फ़ौजियों ने बेल्ट निकाल कर दो चार को तो अच्चे से सुधार दिया। पूरी बोगी में एक एक सीटों पर लम्बे पडे हुए सब उठकर बैठ गए और बैठिए साहब, बैठिए साहब करने लगे। कहां तो वे दरवाजा खोलने को तैयार नहीं थे। इसे ही कहते हैं लातों के भूत बातों से नहीं मानते। फ़ौजियों के साथ दिल्ली तक का सफ़र अच्छे से कट गया। उनके किस्से भी बड़े मजेदार थे। इस तरह हमारी हनुमानगढ यात्रा पूरी हुई।
चित्र -गुगल से साभार
पाय लागी महराज। बने लिखे गये हे। बधाई। मोर कंप्यूटर के कुंजी पटल काम नई करत हे। आर के बाद वाले वर्ण हा नई आवत हे।
जवाब देंहटाएंउस समय तो पूरा रेवाडी पूरा हनुमानगढ मीटर गेज की लाइन से चलता था। अब तो खैर सादुलपुर तक बडी लाइन बन गयी है लेकिन सादुलपुर-हनुमानगढ-श्रीगंगानगर-सूरतगढ लाइन अभी भी मीटर गेज ही है।
जवाब देंहटाएंबढिया संस्मरण।
बढिया संस्मरण..
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