चलते हैं एक एतिहासिक गांव की सैर पर. पश्चिम में विशाल पर्वत, पूर्व में वीरान नदी, दक्षिण में सुन्दर झरना और उत्तर में पर्वतों से घिरा एक छोटा सा आदिवासी बाहुल्य एतिहासिक गांव करमागढ़. गांव के बीच में पुरातन कालीन देवी स्थल जिसे मानकेसरी गुडी और गांव से दो किलोमीटर दूर चट्टानी खंडहरों के बीच एक एतिहासिक दर्शनीय स्थल जिसे छत्तीसगढ़ आंचल में उषा कोठी के नाम से जाना जाता है. यहाँ ४०० मीटर लम्बी और २०० मीटर ऊंची विशाल चट्टान आकर्षक प्रतिमाएं तथा अज्ञात लिपियाँ हैं जो विद्वानों की समझ से परे हैं. चट्टान के मध्य में वृत्ताकार चिन्ह हैं जिसके मध्य में श्री कृष्ण की छोटी सी प्रतिमा अद्वितीय है. आदिवासियों द्वारा प्रतिवर्ष आदिकाल से गांव की तरक्की के लिए विलक्षण पशुबलि दी जाती है और अनोखे ढंग से पूजा-पाठ किया जाता है.
रायगढ़ जिले से ३० वें किलोमीटर उड़ीसा की सीमा पर ग्राम करमागढ़ है. इस गांव के बुजुर्गों का कहना है कि आश्विन चतुर्दशी की रात छत्तीसगढ़ एवं उड़ीसा अंचल के समस्त देवी-देवता रात १२ बजे गांव में प्रवेश करते है. इसी रात गांव के पॉँच प्रतिष्ठित बैगा मानकेसरी गुडी में(मंदिर) में निर्वस्त्र होकर घंटों पूजा-पाठ करते है और एक काले बकरे की बलि चढाकर उसे प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं. इसलिए गांव के कोटवार द्वारा पहले से ही मुनादी कर दी जाती है कि आज की रात कोई घर से बाहर नहीं निकलेगा.
दुसरे दिन यानी शरद पूर्णिमा को यहाँ मेला लगता है. जिसमे क्षेत्र की समस्त चौहान बाजा पार्टी यहाँ उपस्थित होती है. गांव को दुल्हन की तरह सजाया जाता है. संध्या पॉँच बजे मुख्य बैगा (प्रधान पुजारी) पर देवी सवार होती है. अनेकों बाँझ नारियां यहाँ संतान प्राप्ति की आशा में गुडी के समक्ष माथा टेकती हैं. देवी सवार भीगा उनके खुले केश पकड़ कर उठता है तथा कुछ ऐसी महिलाओं को पैर से ठोकर मारता है जिन्हें भविष्य में संतान ना होने का प्रमाण है. इसके अलावा अत्यधिक लोग पारिवारिक विपदा निवारण, रोजगार, पदौन्नति व रोग मुक्ति के लिए के लिए मन्नत मांगने दूर-दूर से आते है. स्थानीय लोगों का कहना है कि यह परंपरा पुरातन काल से चली आ रही और लोगों को विश्वास और आस्था है. यहाँ आने वालों की सारी मन्नते पूरी होती हैं.
शरद पूर्णिमा के दिन देवी सवार बैगा को सैकड़ों लीटर दूध से नहलाया जाता है. देखा गया है कि प्रत्येक बकरे के धड से बैगा रक्त पान करता है और तीन घंटे तक बैगा पुरे गांव का भ्रमण गाजे-बाजे के साथ करता है. हजारों लोग इस पशु बलि तथा देवी सवार बैगा के भ्रमण को देखने एवं कटे बकरे के रक्त से तिलक लगाने में शक्ति का बोध करते हैं. लोग फटे पैरों तथा घावों पर बलि का तजा रक्त लगाते हैं. ताकि रोग मुक्त हो सकें.
करमागढ़ वास्तव में एक वन्य ग्राम है. साँझ होते ही विभिन्न पशुओं की किलकारी, शेर की दहाड़ तथा रंग-बिरंगे चहकते पक्षियों के कलरव से मन मुग्ध हो जाता है. यहाँ कभी उछलते-फुदकते खरगोश, दौड़ते-भागते हिरन, किसी पेड के नीचे मंडराते मतवाले भालू, उपद्रवी बहुवर्णीय वानर-दल तथा वर्षा ऋतू में मयूर नृत्य हमेशा देखने मिलता है. यहाँ के वीरान जंगल में गांव से ३ किलो मीटर दूर पहाडी,नदी व झरने के मध्य एक विशाल चट्टान पर देवी की आकर्षक प्रतिमा है. स्थानीय आदिवासी इस स्थान को करमागढ़ का प्रवेश द्वार और स्थापित देवी को करमागढ़िन के नाम से मानते हैं. बहुत ही रमणीय स्थल है करमा गढ़ छत्तीसगढ़ आंचल का. यहाँ कौन नहीं जाना चाहेगा?
इस विलक्षण जानकारी केलिए आभार.
जवाब देंहटाएंकरमागढ के बारे में बहुत अच्छी जानकारी !!
जवाब देंहटाएंyah silsilaa jaree rahe. shubhkamanaye
जवाब देंहटाएंramaniya sthal ki sunder jhhanki hai.ASHOK BAJAJ
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छे संस्मरण ... ऐसा लगा जैसे हम अतीत के किसी युग में विचर रहे होँ ... इन लोगों की परम्पराएं ही इनकी थाती हैं ... सुन्दर ज्ञानवर्धन के लिए धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबढ़िया...जानकारी भरा आलेख
जवाब देंहटाएंइस सुन्दर जानकारी के लिये धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसुंदर जानकारी दे रहे हैं,इसे कहते हैं सार्थक लेखन।
जवाब देंहटाएंजो भविष्य में भी किसी के काम आ सकता है।
अच्छा लगा पड़ कर ।
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा पड़ कर ।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी जानकारी है धन्यवाद्
जवाब देंहटाएंइस ऐतिहासिक गाँव के बारे में पहली बार ही सुना, आभार।
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क्या आप बता सकते हैं कि इंसान और साँप में कौन ज़्यादा ज़हरीला होता है?
अगर हाँ, तो फिर चले आइए रहस्य और रोमाँच से भरी एक नवीन दुनिया में आपका स्वागत है।
informative and interesting post...Thanks.
जवाब देंहटाएंकरमागढ वाकई एक वन्य गांव है, यह तो चित्र देखकर ही पता चल रहा है।
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