मंगलवार, 27 जुलाई 2010

बहुत हुई रावण की बकवास- यात्रा का अंतिम भाग

रावण की बकवास
प्रारंभ से पढें-------शाम को सोकर उठे तो प्लान किया कि कल सुबह नागपुर से निकला जाए। नीरज कहने लगा कि यहां किसी अच्छे अस्पताल में शरीर का जनरल चेकअप करवा लेते हैं। मैने मना कर दिया कि रायपुर में करवा लेंगे। अब समय था रिफ़्रेशमेंट का। बहुत फ़ालतु चक्कर काट लिए 5 दिन। हाईवे पर कार दौड़ाते रहे। पूरी प्लानिंग चौपट हो गयी थी। अगर एक फ़ोन नहीं करता तो गोवा से लौट रहे होते, मौज मेल्ले ले के। लेकिन शायद किस्मत को यही मंजुर था। एक बढिया बार देखकर पहुंच गए तीनों रिफ़्रेशमेंट के लिए। बीयर का आनंद लेते हुए गपशप करते रहे। मैं फ़िल्में बहुत कम देखता हूँ क्योंकि आजकल की फ़िल्में मुझे पसंद ही नहीं आती। नयी फ़िल्में कोई एकाध देखी होगी। नीरज कहने लगा खाना खाकर रात को फ़िल्म देखने चलते हैं आईनॉक्स में। मैं होटल में क्या करता? मैने भी कहा ठीक है। नीरज आईनॉक्स टिकिट लेने चला गया और मैं होटल में आ गया।

जब तक नीरज टिकिट लेकर आता तब तक मैं लैपटॉप का उपयोग करने लगा। एक पोस्ट पर पाबला जी की टिप्पणी दिखी कि हो सके तो कल हम भी नागपुर में होंगे। मैने उसके बाद पाबला जी को खुब फ़ोन लगाया,लेकिन फ़ोन ही नहीं लगा। रात के खाने में बिरयानी मंगाई गयी। नीरज नानवेज नहीं लेता,इसलिए उसने सादा खाना मंगवाया। अगर आप नानवेजिटेरियन है और कभी नागपुर आएं तो यहां जमजम की बिरयानी का स्वाद अवश्य लें। बहुत ही लजीज बिरयानी मिलती है। यह रेस्टोंरेंट सेंट्रल एवेन्यु पर ही है। बिरयानी ने तो आनंद ला दिया। मजा आ गया। अब प्लानिंग बन गयी कि यहां से होटल चेक आउट करके ही चलते हैं। फ़िल्म देखकर वहीं से रायपुर के लिए निकल लेंगे। हम होटल चेक आउट करके अपना सामान लेकर फ़िल्म देखने चले गये और वह फ़िल्म थी रावण।

बहुत शोर सुना था पहलु में दिल का,चीरा तो एक कतरा खुन न निकला। रावण के विषय में उसके गाने को लेकर बहुत दिनों से हल्ला मचा हुआ था। लोग कह रहे थे कि फ़िल्म में कुछ दम है और इसके गाने को नक्सलियों ने अपना नक्सल गान बना लिया है। जब फ़िल्म शुरु हुई तो अभिषेक बच्चन, एश्वर्या राय, और गोविंदा समझ में आए। अभिषेक बच्चन राबिन हुड बना हुआ था और पुलिस अधिकारी की पत्नी एश्वर्याराय का हरण करके जंगल में ले जाता है और पुलिस वाला अपनी बीबी को ढुंढते रहता है। बस यही कहानी है फ़िल्म की।
रावण की बकवास

फ़िल्म के सीन अवास्तविक लगे। एश्वर्या का इतनी ज्यादा उंचाई से नदी में कूदना और पेड़ की डाल पर अटकना। उसके पीछे पीछे अभिषेक का भी पानी में छलांग लगाना। फ़िर लताओं के सहारे उसे पहाड़ी पर चढाना। फ़िर गाना शुरु हो जाता है जैसे दोनो में इश्क हो गया हो। पुलिस वाला बैठा बैठा हलाकान होता रहता है। बीबी उधर जंगल में गाना गाती है। गोंविन्दा पगलैट बना घुमता है। यह सब वाहयात आईटम देखकर मुझे तो नींद आने लगी। इंटरवल होते ही मैं तो सो गया। जब फ़िल्म खत्म हुई तो नीरज ने जगाया कि चलिए फ़िल्म खत्म हो गयी। मैने कहा है कि यह तो मेरे लिए बहुत पहले ही खत्म हो गयी थी। क्या  यार एक दम फ़्लाप फ़िल्म दिखाने ले आया। पूरा टैम भी खराब किया।

एक बजे हम रायपुर के लिए निकल लिए। कार विक्की चला रहा था। मैं पिछली सीट पर सोया। रात को ये गाड़ी चलाते रहे। किसी जगह इन्होने ढाबे में रात को बैठकर फ़िर बीयर पी और थोड़ी बहुत गाड़ी चला कर आगे किसी ढाबे में पड़ गए। सुबह 5बजे मेरी आंख खुली तो ये ढाबे में सोए हुए थे। इन्हे जगाया और चलने को कहा। चाय पीकर एक बार फ़िर चल पड़े। रास्ते में पानी गिरने से सड़क के किनारे की मिट्टी कट गयी थी और कीचड़ काफ़ी हो गया था। रायपुर से नागपुर सड़क के चौड़ी करण का काम हो रहा है, मुझे याद है इसे चलते हुए लगभग 10साल हो गए लेकिन अभी तक पूरा नहीं हुआ है। अंजोरा के पास एक ढाबे में आलु के पराठे खाए। भिलाई पहुंचने पर एक बार मन में ख्याल आया कि संजीव तिवारी जी फ़ोन लगाया जाए। लेकिन देर होने का खतरा सोच कर फ़ोन नहीं लगाया सीधे ही निकल लिए।

19 जून से चले हुए 26 जून को 12 बजे घर पहुंचे। बिना प्लानिंग की आवारागर्दी करके। बस दिन रात सड़क ही नापते रहे। रुपयों की भी वाट लगाई और कुछ हासिल भी नहीं हुआ। बस शनि सिंघणापुर और वर्धा ही गए। अचानक आधी रात को उठकर निकलने के यही परिणाम होते हैं। अगर दो चार दिन पहले ही योजना बना लेते ठंडे दिमाग से तो आनंद ही कुछ और रहता। यात्रा का आनंद लेना है तो अपनी गाड़ी से जाने की बजाए, ट्रेन या फ़्लाईट जो सुविधा जेब सह सकती है उससे जाए और इच्छित स्थान पर जाकर टैक्सी किराए कर लें तो वही बेहतर होता है। मुझे यात्रा वही पसंद है जो एक स्थान पर दो चार दिन रुक कर आराम से देखा जाए। भाग-दौड़ और समय की कमी वाली यात्राएं न ही करें तो बेहतर है। यह यात्रा यहीं पर सम्पन्न होती है। पुन: आते हैं अन्य यात्रा स्मरण के साथ।

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3 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बढ़िया यात्रा संस्मरण! कतको प्लानिंग करले यात्रा हा ओइसने होथे। अउ जहां सड़क उड़क बने के बात हे त ये सब काम हा सौ दिन चले अढ़ाई कोस वाले आय। अउ भाई फिलम फिलम ही होथे। हकीकत कुछ अउ। अब काय कर सकत हस जय जोहार………

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  2. आपकी यात्रा संस्मरण का जवाब नहीं, ऐसा लगता है सजीव रूप से दृश्य चल रहे हैं या हम खुद यात्रा के भागीदार हैं.

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  3. यात्रा के पिछले दो संस्मरण भी आज ही पढे। हैरानी हुयी कि आज भी ऐसे गाँव मौजूद हैं जहांम दरवाजे पर ताले नही लगते। आज अन्तिम कडी पढी बहुत अच्छा रहा पूरा संस्मरण बधाई।

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