सोमवार, 23 अप्रैल 2012

पिशाच मोचन इमरती और लिट्टी-चोखा

में जो ऑटो वाला मिला था वह बहुत अच्छा आदमी था, उसने हमें भरत कुंड पहुंचाया, मैने उसे सबके लिए चाय बनवाने कहा और हम मंदिर दर्शन के लिए चल पड़े। मंदिर में पहुचने पर एक जगह लिखा था "भरत गुफ़ा" । बताया गया कि यहाँ भरत जी ने गुफ़ा में रहते थे। कहते हैं कि राम-भरत मिलाप के पश्चात भरत खड़ाऊं लेकर फैजाबाद मुख्यालय से 15 कि. मी. दक्षिण स्थित भरतकुंड नामक स्थान पर चौदह साल तक रहे। भरत कुंड एक ग्राम है जिसे नंदीग्राम कहा जाता है। इस मंदिर से लगा हुआ एक मंदिर और भी वहां भी भरत गुफ़ा बनी हुई  है। हमारे एक साथी ने दोनों गुफ़ाओं के विषय में पूछा तो पुजारी ने कहा कि कुछ नगद दिखाओगे तभी जानकारी बाहर निकलेगी। मुफ़त मे कुछु नही मिलेगा। पूछने वाला भी तेली था, न उसने नगद दिए और न पुजारी ने जानकारी उगली। तभी एक बोलेरो वाला मंदिर के गेट को ठोक कर सपाटे से भाग निकला। उसकी स्पीड इतनी थी कि वह कहीं भी दुर्घटना कर सकता था। उसके साथ बालाघाट के दर्शनार्थी थे, उनकी बोली से लग रहा था। 

भरत कुंड
यहां से लगा हुआ ही एक कुंड हैं जहाँ  हर साल चैत्र कृष्ण चतुर्दशी को मेला लगता है। मान्यता है कि इस सरोवर में स्नान से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। कुंड कई एकड़ में फ़ैला हुआ है, जलकुंभी ने कुंड पर कब्जा कर रखा है, और बंदरों ने आतंक फ़ैला रखा है,  किसी के भी हाथ में जो कुछ दिखा उसे झपट्टा मार कर ले ही जाना है। हमारा इरादा पाप नष्ट करने का नहीं था, अभी कल ही तो सरयू स्नान कर सारे पाप धो लिए थे। पाप नाशक स्नान को मैं कम्पयुटर के एन्टीवायरस प्रोग्राम से ही जोड़ कर देखता हूं, एक बार स्केन याने स्नान कर लो फ़िर सारे पापरुपी वायरस का सफ़ाया हो जाता है। "न सौ काशी न एक पिचाशी।" इन्हीं किंवदंतियों के बीच नंदीग्राम का एतिहासिक पिशाची मेला चैत्र कृष्ण चतुर्दशी को बदस्तूर जारी है। कुंड से वापस आकर हमने होटल में चाय पी, चाय पीने वाले कम थे और चाय अधिक हो गयी थी, होटल वाले ने 3 चाय वापस लेने से मना कर दिया, प्रताप ने दो चाय ली और मैने भी, मामला फ़िट हो गया।चाय वापस नहीं करनी पड़ी।

भरत कुंड के यात्री
नंदीग्राम भरतकुंड पिशाची के बारे में दो तरह की किंवदंतिया हैं पहली यह कि लंका में युद्ध के दौरान जब मेघनाद के बाण से लक्ष्मण मूर्छित हो गए थे तो हनुमान जी को संजीवनी बूटी लाने भेजा गया था। बूटी की पहचान न होने के कारण वह पहाड़ उठाकर ही लंका की ओर चल पड़े। जब वे अयोध्या के ऊपर से जा रहे थे तो कुछ देर के लिए समूचे क्षेत्र में अंधकार छा गया। आसमान की ओर देखने पर किसी दानव शक्ति द्वारा अयोध्या पर आक्रमण किए जाने की आशंका में भरत जी ने बाण चला दिया। बाण लगने के कारण हनुमान जी पर्वत समेत गिर गए थे। पुजारी हनुमान दास कहते हैं कि जिस स्थान पर हनुमान जी गिरे थे वहां कुंड बन गया था। उसी को पिशाच मोचन कुंड के नाम से जाना जाता है। दूसरी किंवदंती है कि लंका विजय के बाद भगवान श्रीराम ब्रह्मा हत्या के पाप से मुक्त होने से लिए पिशाच मोचन कुंड में स्नान किया। इस कारण पिशाच मोचन कुंड की मान्यता है कि न सौ काशी न एक पिशाची।

मणि पर्वत का शिलालेख
अब यहाँ से हम वापस चल पड़े अयोध्या की ओर, ऑटो चालक से पूछ कि बीच में और कुछ दर्शनीय स्थल हो तो वह भी दिखा दे। तो उसने बताया की रास्ते में मणिपर्वत मिलेगा। मैने कहा कि - मणिपर्वत चलो, वहीं तुम्हारा भाड़ा भी सकेल कर दे देगें। वह तैयार हो गया। हम मणिपर्वत पहुंचे। एक ऊंचा सा टीला है जिसपर मंदिर बना है, यहां के पुजारी ने बताया कि जब सीता जी जनकपुरी से वापस आई थी तब यहीं पर मणियों का पर्वत बना कर सीता जी झूले में झुलाया गया था। यहाँ प्रतिवर्ष सावन मेला लगता है, जिसमें अयोध्या के साते देवी देवता झूला झूलने आते हैं यह उत्सव 12 दिन चलता है। इस उत्सव के लिए प्रशासन सारी व्यवस्था करता है। मेले में लाखों श्रद्धालु सावन झूला पर्व मनाने  आते हैं। यह स्थान भारतीय पुरातत्त्व के संरक्षण में है। इस मंदिर में कई शंख रखे हैं, जिनमें एक शंख को पांच्जन्य शंख भी बताया गया है।

दीवारों पर वाल्मीकि रामायण
मणि पर्वत के दर्शन कर के हम मणिराम की छावनी पहचें। वाल्मीकी रामायण मंदिर भी खुल चुका था।  वाल्मीकी रामायण भवन का निर्माण मंहत नृत्यगोपाल दास जी ने कराया था। 1956 में प्रारंभ होकर दस वर्षों में इसका निर्माण 1966 में पूर्ण हुआ, यहां दुनिया का अनोखा रामायण बैंक है, यहां अभी तक 164 अरब से अधिक राम नाम जमा हो चुके हैं।इस बैंक का नाम है 'अंतरराष्ट्रीय श्री राम नाम बैंक।' इस बैंक में राम नाम जमा कराने पर ब्याज भले ही न मिलता हो मगर सच्चा आनंद अवश्य मिलता है। अंतरराष्ट्रीय श्री राम नाम बैंक की स्थापना वर्ष 1963 में अयोध्या में नृत्य गोपालदास महाराज द्वारा की गई थी। गाजियाबाद में इसकी शाखा की स्थापना प्रख्यात संत व कथावाचक डोंगरे जी महाराज ने घंटाघर स्थित रामलीला मैदान में आयोजित श्रीमद्‍भागवत कथा के दौरान की थी। आज इस बैंक की देश-विदेश में मिलाकर 125 से अधिक शाखाएँ हैं। गाजियाबाद के हनुमान मंदिर में इसकी 42वीं शाखा है।

पाञ्चजन्य शंख
बैंक में खाता खोलने के लिए किसी कागजात की नहीं बल्कि राम नाम की जरूरत है। बच्चे, युवा, बुजुर्ग, महिला या पुरुष कोई भी, किसी भी भाषा में सवा लाख सीताराम या राम नाम लिखकर बैंक में अपना खाता खोल सकता है। इतना ही नहीं, जो भक्त नियमित रूप से राम नाम लिखता है, वह बैंक का स्थायी सदस्य बन जाता है और उसे बैंक की तरफ से पास बुक व सदस्यता प्रमाण पत्र भी दिया जाता है। एक करोड़ राम नाम लिखने वाले भक्त को स्वर्ण पदक, पचास लाख राम नाम लिखने वाले को रजत पदक व 25 लाख राम नाम लिखने वाले को काँस्य पदक से सम्मानित किया जाता है। 25 वर्ष की आयु में ही 15 लाख नाम लिखने पर भी काँस्य पदक मिलता है। राम नाम लिखने के लिए वैसे तो बैंक से ही कॉपी मिलती है मगर निजी कापी या डायरी आदि में भी राम नाम लिखकर बैंक में जमा कराया जा सकता है। राम नाम लिखी कॉपियों को अयोध्या स्थित 'श्री वाल्मीकि रामायण भवन' में सुरक्षित रखा गया है। 

गरमा गरम इमरती
रामायण भवन से दर्शन करके हम पुन: उसी रास्ते पर निकल पड़े, रास्ते में एक दर्जी अंगरखा सील रहा था, एक साधु अंखरखे का ट्रायल ले रहा था, मेरे भी मन में एक अंगरखा डोरी वाला सिलाने की आई, लेकिन देर हो चुकी थी। अगर यह दर्जी सुबह दिख जाता तो शाम तक अंगरखा तैयार हो सकता था। अब समय नहीं था, अंगरखा सिलाने की अधुरी इच्छा को फ़िर कभी पर टाल कर आगे बढे, मुख्य मार्ग पर आने तब जोर की भूख लग चुकी थी। एक होटल में गर्मागरम इमरती बन रही थी। लालच आ ही गया, क्या करुं कंट्रोल ही नहीं होता। साथियों से पूछ कि नास्ता करना है क्या? सभी ने न में जवाब दिया, मैं होटल में पहुंचा, इमरती सौ रुपए किलो थी, होटल का नाम सौरभ होटल, एक पाव इमरती ली, एक पाव में 10-12 इमरतियाँ तो चढ गयी। तीना चार इमरतियाँ होटल में  ही खड़े-खड़े उदरस्थ की, बाकियों को थैली में बंद करके आगे बढे, मुझे इमरतियाँ लेते देख कर दो चार साथियों ने भी खरीदी। मैने सभी से खाने के विषय में पूछा तो उन्होने सभी का खाना गायत्री मंदिर में बनना बताया। सबको लेकर जब गायत्री मंदिर पहुंचा तो देखा कि वहां कुछ लोगों का ही खाना बन रहा है। अब मेरी बात न मानने की सजा भुगतो। कह कर मैं बिरला धर्मशाला की ओर बढ लिया।

गुगल सर्च इंजन पर ललित शर्मा
रास्ते में दो जगह लिट्टी चोखा मिल रहा था। एक जगह तली हुई बाटी थी, आलू के साग के साथ, दूसरी जगह भुनी हुई बाटी दिखाई दी। मैने दोनो ले ली। अब खाने की जरुरत नहीं थी इनसे ही काम चल जाएगा। रास्ते में सुबह वाला सायबर कैफ़े दिखाई दिया। फ़िर क्या था? घुस गए सायबर कैफ़े में। सायबर कैफ़े के संचालक ने आईडी मांगी। आई डी कार्ड सब मेरे बैग में पड़े थे, मैने कहा कि गुगल पर मेरा नाम सर्च के देखिए। जब उसने हिन्दी में "ललित शर्मा" सर्च किया तो 3 सेकंड में ढाई लाख से उपर लिंक दिखाई दिए और जैसे ही इमेज सर्च की तो सैकड़ो फ़ोटो मेरी सर्च इंजन ने निकाल कर धर दी। उसे देखकर संचालक ने कहा कि "अब आपकी आई डी की जरुरत नहीं है, आप तो गुगल में सर्वत्र व्यापक हैं। चलाईए इंटरनेट, ब्लॉगिंग का यह फ़ायदा हुआ। अब पहचान पत्र रखने की आवश्यकता नहीं है। हमारी पहचान गुगल पर स्थापित हो चुकी है। कैफ़े से मेल आदि चेक किए और ब्लॉग पर दो फ़ोटो लगा कर अपने रुम में पहुचा। पंकज का चेतन भगत से पीछा नहीं छूटा था, कह रहा था कि बड़ा बोरिंग उपन्यास है, उपन्यास का नाम मैं भूल रहा हूँ। दोनो ने लिटी चोखा खाया इमरती के साथ और मैं आम्रपाली के सपनों में खो गया।-- आगे पढें
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