रविवार, 27 जून 2010

प्रथम ग्रासे मक्षिका पात:---यात्रा--1

19 तारीख को एक विवाह समारोह में शामिल होकर सुबह घर पहुंचा, 2 बजे नीरज का फ़ोन आया कि भैया घुमने चलते हैं। मैने कहा आ जाओ,चलते हैं। कहां जाना है यह निश्चित नहीं था। रात 9 बजे नीरज घर पहुंचा। साथ में विक्की भी था। अब हमने चर्चा की, कहाँ जाना चाहिए? नीरज ने कहा कलकत्ता चलते हैं। मैने कहा कि पूरी चलते हैं वहां इ सी आर पकड़कर सीधा समुद्र के किनारे-किनारे पाण्डीचेरी पहुंचते हैं। बढिया  मौसम है बरसात शुरु हो चु्की है। समुद्र किनारे की इस यात्रा में मजा आ जाएगा। लेकिन बात कुछ जमी नहीं। तब हमने तय किया कि पहले नागपुर चलते हैं और वहां होटल में बैठकर कार्यक्रम तय करते हैं कि किधर चलना? रात खाना खाकर हम चल पड़े नागपुर की ओर गाड़ी मैं ड्राईव कर रहा था। सामने की सीट पर नीरज जाग रहा था, पीछे की सीट पर दो बीयर हलक से उतार कर विक्की सो रहा था।

रायपुर पहुंचने पर मैने सोचा कि अन्ना(देवी शंकर अय्यर) को भी साथ ले लिया जाए। फ़ोन करने पर उन्होने बताया कि उनके पापा घर में नहीं है और मम्मी अकेली है उनकी भी उमर 85साल तो होगी ही। इसलिए अन्ना का रुकना जरुरी है। जाना ठीक नहीं। इसलिए हमने रायपुर में ब्रेक नहीं लि्या। नागपुर को लक्ष्य करके चलते रहे। चरोदा पहुंचने पर अन्ना का फ़ोन आया कि हम कहां तक पहुंचे हैं। मैने बताया कि चरोदा पार कर चुके हैं। मुझे लगा कि अन्ना के मन में आया होगा कि साथ चलते तो अच्छा रहता, लेकिन मन की मन मे रह गयी। उन्हे पहले ही निर्णय ले लेना था।

जैसे ही हमने महाराष्ट्र में प्रवेश किया वैसे ही मुसलाधार बारिश ने हमारा स्वागत कि्या। इतनी जोरदार बारिश कि 5फ़ुट सामने की सड़क नहीं दिख रही थी। लेकिन मैने गाड़ी रोकी नहीं धीरे चलते रहे। सड़क में भी निर्माण के कारण इतने डायवर्शन थे कि गाड़ी चलाना भी मुस्किल हो गया था। 200किलो मीटर लगातार चलने के बाद एक ढाबे में मैने गाड़ी रोकी लगभग सुबह के 4बज रहे थे। भंडारा पार कर चुके थे। यहां हमने गरमा-गरम चाय पी और ड्रायविंग सीट नीरज ने संभाल ली। अब मुझे नींद आ रही थी। मेरे सोने से नीरज को परेशानी न हो इसलिए मैने काला चश्मा निकाल कर लगा लिया। जिससे मेरी बंद आंखे उसे दिखाई न दे और वह समझता रहे कि मैं जाग रहा हूँ, वह गाड़ी चलाता रहे।

सुबह 6बजे हम नागपुर में प्रवेश कर रहे थे। तभी एक चेकपोस्ट पर गाड़ियों की चेकिंग हो रही थी। हमारी गाड़ी भी रोकी गयी। दो सिपाही सामान चेक करने लगे। यह एक नियम हो चुका है कि जब भी कोई मेहमान कि्सी राज्य में प्रवेश करे,उसकी पूरी खाना तलाशी होनी चाहिए। फ़िर गाड़ी के कागज एवं लायसेंस मंगाया गया। अब नी्रज ने कहा कि भैया मैं तो गाड़ी के कागजात भूल गया हूँ और मेरे तथा विक्की के पास लायसेंस नहीं है। बस! सुनते ही लगा कि भैंस गयी पानी में। निकल लिए यात्रा में न गाड़ी के कागजात और न लायसेंस । तो नीरज कहने लगा कि आपके पास तो लायसेंस है, आप वह दिखा दिजिए। हवलदार को मैने अपना लायसेंस दिखाया तो वह कहने लगा कि जो चला रहा था उसका लायसेंस चाहिए। कुल मिला कर "प्रथम ग्रासे मक्षिका पात:"  याने बिना मुंडन के नहीं निकल सकते थे। वो भी सु्बह सुबह जब बोहनी का टैम हो और महाराष्ट्र पुलिस ऐसे ही छोड़ दे। वे1000 रुपए से शुरु हुए और हम 100 रुपए से, आधे घंटे में 300 पर बात जम गयी। उस पुलिस वाले ने एक फ़र्जी चालान बनाया, उसमें राशि नहीं लिखी। हमारा दस्तखत कराया और जाते हुए कहा कि अब जिसके पास लायसेंस है वही गाड़ी चलाए शहर में।  बाहर निकलने के बाद कोई भी चला सकता है।

अब गाड़ी फ़िर हमारे हवाले सुबह सुबह सरकारी पंडो की भेंट दक्षिणा के चक्कर में समय तो खराब हुआ ही मुड़ भी खराब हो गया था। हमने तय किया था किसी भी रिश्तेदार को खबर नहीं करना है। अब होटल ढुंढने लगे क्योंकि प्रेशर सब तरफ़ से था। गांधी बाग में एक होटल मिला, अमीर होटल, हमने काउंटर पर रेंट पूछा तो साधारन डबल बेड रुम के 1250रुपए, 14% टैक्स अलग, कूलर चलाने पर 50 रुपया अलग से लगेगा, रुम मे सर्विस चार्ज 10% अलग से। हम और कोई हो्टल जाने की स्थिति में नहीं थे। इसलिए जो उसने कहा वह मंजूर कर लिया। रुम की बालकनी सड़क पर खु्लती थी। लेकिन रुम अच्छी स्थिति में नहीं था। नाम जरुर अमीर होटल था लेकिन वहां ऐसी कोई चीज नहीं थी जिससे उसकी अमीरी का पता चलता। तो महाराष्ट्र का टैक्स हमने जमा कर दिया और चाय पीकर सो गए।...................जारी है-आगे पढें
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शनिवार, 19 जून 2010

एतिहासिक गांव करमागढ़

चलते हैं एक एतिहासिक गांव की सैर पर. पश्चिम में विशाल पर्वत, पूर्व में वीरान नदी, दक्षिण में सुन्दर झरना और उत्तर में पर्वतों से घिरा एक छोटा सा आदिवासी बाहुल्य एतिहासिक गांव करमागढ़. गांव के बीच में पुरातन कालीन देवी स्थल जिसे मानकेसरी गुडी और गांव से दो किलोमीटर दूर चट्टानी खंडहरों के बीच एक एतिहासिक दर्शनीय स्थल जिसे छत्तीसगढ़ आंचल में उषा कोठी  के नाम से जाना जाता है. यहाँ ४०० मीटर लम्बी और २०० मीटर ऊंची विशाल चट्टान आकर्षक प्रतिमाएं तथा अज्ञात लिपियाँ हैं जो विद्वानों की समझ से परे हैं. चट्टान के मध्य में वृत्ताकार चिन्ह हैं जिसके मध्य में श्री कृष्ण की छोटी सी प्रतिमा अद्वितीय है. आदिवासियों द्वारा प्रतिवर्ष आदिकाल से गांव की तरक्की के लिए विलक्षण पशुबलि दी जाती है और अनोखे ढंग से पूजा-पाठ किया जाता है.
रायगढ़ जिले से ३० वें किलोमीटर उड़ीसा की सीमा पर ग्राम करमागढ़ है. इस गांव के बुजुर्गों का कहना है कि आश्विन चतुर्दशी की रात छत्तीसगढ़ एवं उड़ीसा अंचल के समस्त देवी-देवता रात १२ बजे गांव में प्रवेश करते है. इसी रात गांव के पॉँच प्रतिष्ठित बैगा मानकेसरी गुडी में(मंदिर) में निर्वस्त्र होकर घंटों पूजा-पाठ करते है और एक काले बकरे की बलि चढाकर उसे प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं. इसलिए गांव के कोटवार द्वारा पहले से ही मुनादी कर दी जाती है कि आज की रात कोई घर से बाहर नहीं निकलेगा.
दुसरे दिन यानी शरद पूर्णिमा को यहाँ मेला लगता है. जिसमे क्षेत्र की समस्त चौहान बाजा पार्टी यहाँ उपस्थित होती है. गांव को दुल्हन की तरह सजाया जाता है. संध्या पॉँच बजे मुख्य बैगा (प्रधान पुजारी) पर देवी सवार होती है. अनेकों बाँझ नारियां यहाँ संतान प्राप्ति की आशा में गुडी के समक्ष माथा टेकती हैं. देवी सवार भीगा उनके खुले केश पकड़ कर उठता है तथा कुछ ऐसी महिलाओं को पैर से ठोकर मारता है जिन्हें भविष्य में संतान ना होने का प्रमाण है. इसके अलावा अत्यधिक लोग पारिवारिक विपदा निवारण, रोजगार, पदौन्नति व रोग मुक्ति के लिए के लिए मन्नत मांगने दूर-दूर से आते है. स्थानीय लोगों का कहना है कि यह परंपरा पुरातन काल से चली आ रही और लोगों को विश्वास और आस्था है. यहाँ आने वालों की सारी मन्नते पूरी होती हैं.
शरद पूर्णिमा के दिन देवी सवार बैगा को सैकड़ों लीटर दूध से नहलाया जाता है. देखा गया है कि प्रत्येक बकरे के धड से बैगा रक्त पान करता है और तीन घंटे तक बैगा पुरे गांव का भ्रमण गाजे-बाजे के साथ करता है. हजारों लोग इस पशु बलि तथा देवी सवार बैगा के भ्रमण को देखने एवं कटे बकरे के रक्त से तिलक लगाने में शक्ति का बोध करते हैं. लोग फटे पैरों तथा घावों पर बलि का तजा रक्त लगाते हैं. ताकि रोग मुक्त हो सकें.
करमागढ़ वास्तव में एक वन्य ग्राम है. साँझ होते ही विभिन्न पशुओं की किलकारी, शेर की दहाड़ तथा रंग-बिरंगे चहकते पक्षियों के कलरव से मन मुग्ध हो जाता है. यहाँ कभी उछलते-फुदकते खरगोश, दौड़ते-भागते हिरन, किसी पेड के नीचे मंडराते मतवाले भालू, उपद्रवी बहुवर्णीय वानर-दल तथा वर्षा ऋतू में मयूर नृत्य हमेशा देखने मिलता है. यहाँ के वीरान जंगल में गांव से ३ किलो मीटर दूर पहाडी,नदी व झरने के मध्य एक विशाल चट्टान पर देवी की आकर्षक प्रतिमा है. स्थानीय आदिवासी इस स्थान को करमागढ़ का प्रवेश द्वार और स्थापित देवी को करमागढ़िन के नाम से मानते हैं. बहुत ही रमणीय स्थल है करमा गढ़ छत्तीसगढ़ आंचल का. यहाँ कौन नहीं जाना चाहेगा?  
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गुरुवार, 17 जून 2010

"चलती का नाम गाड़ी" से चलिए तुरतुरिया-लव कुश की जन्म भूमि

मित्रों, पाठकों की मांग पर हमने 'चलती का नाम गाड़ी' नामक यह ब्लाग प्रारंभ किया है, आपको यहां यात्राओं से संबंधित वृतांत पढने मिलेंगें। इसी के शुभारंभ की कड़ी में चलिए आज तुरतुरिया चलते हैं.बरसात हुयी है, मौसम ठंडक है. ऐसे में इस प्राचीन स्थल का भ्रमण करना लाभ दायक होगा. रायपुर से लग भग १५० किलो मीटर दूर वारंगा की पहाड़ियों के बीच बहने वाली बालमदेई  नदी के किनारे पर स्थित है तुरतुरिया. यहाँ जाने के लिए रायपुर से बलौदा बाजार से कसडोल होते हुए एवं राष्ट्रीय राजमार्ग 6 पर सिरपुर से कसडोल होते हुए भी जा सकते हैं. इसका एतिहासिक, पुरातात्विक, एवं पौराणिक महत्त्व है. तुरतुरिया का बारे में कहते हैं कि श्री राम द्वारा परित्याग करने पर वैदेही सीता ने यहाँ पर वाल्मीकि आश्रम में आश्रय लिया था. उसके बाद लव-कुश का जन्म यहीं पर हुआ था. रामायण के रचियता महर्षि वाल्मीकि का आश्रम होने के कारण यह स्थान तीर्थ स्थलों में गिना जाता है.

सन 1914 में तत्कालीन अंग्रेज कमिश्नर एच.एम्.लारी ने इस स्थल का महत्त्व समझने पर यहाँ खुदाई करवाई थी. जिसमे अनेक मंदिर और सदियाँ पुरानी मूर्तियाँ प्राप्त हुयी थी. पुरातात्विक इतिहास मिलने के बाद इसके पौराणिक महत्व की सत्यता को बल मिलता है.यहाँ पर कई मंदिर बने हुए है. जब हम यहाँ पहंचते हैं. तो हमें सबसे पहले एक धर्म शाला दिखाई देती है जो यादव समाज ने बनवाई है.कुछ दूर जाने पर एक मंदिर है. जिसमे दो तल हैं, निचले तल में आद्य शक्ति काली माता का मंदिर है. दुसरे तल में राम जानकी मंदिर है. जहाँ संगमरमर की मूर्तियाँ हैं. साथ में लव कुश एवं वाल्मिकी की मूर्तियाँ हैं. मंदिर के नीचे बांयी ओर एक जल कुंड है. जल कुंड के ऊपर एक गौमुख बना हुआ है. जिसमे डेढ़ दो इंच मोटी जलधारा तुर-तुर-तुर की आवाज करती हुयी लगातार गिरती रहती है. शायद इसी कारण इस जगह का नाम तुरतुरिया पड़ा है.

माता गढ़ नामक एक अन्य प्रमुख मंदिर है. जहाँ पर महाकाली विराजमान हैं. नदी के दूसरी तरफ एक ऊँची पहाडी है. इस मंदिर पर जाने के लिए पगडण्डी के साथ सीडियां भी बनी हुयी हैं.माता गढ़ में कभी बलि प्रथा होने के कारण बंदरों की बलि चढ़ाई जाती थी. लेकिन अब पिछले 15 -20 सालों से बलि प्रथा बंद है. अब यहाँ सिर्फ सात्विक प्रसाद चढ़ाया जाता है. माता गढ़ में एक स्थान पर वाल्मिकी आश्रम तथा आश्रम जाने के मार्ग में जानकी कुटिया है. यह एक लोक मान्यता है.

यहाँ प्रति वर्ष पौष की पूर्णिमा के दिन मेला भरता है. कवि वाल्मिकी की कर्म भूमि.बौद्ध साधकों की तपोभूमि और शाक्तों की साधना भूमि के भाव त्रिकोण , धर्म, काम, मोक्ष  के पुरुषार्थ त्रय के दिव्य त्रिकोण और शैल शिखरों से निर्मित सहज प्राकृतिक भूमि क्षेत्र दर्शनीय है. मेला भरने के समय हजारों श्रद्धालुओं का तुरतुरिया आगमन होता है. धार्मिक एवं पुरात्रत्विक महत्त्व के साथ यहाँ के प्राकृतिक सौंदर्य की भी छटा निराली है. चारों ओर गहन जंगल है और इसमें मोर, चीतल, सांभर, बराह, तेंदुआ, बाघ, भालू इत्यादि वन्य प्राणी भी निवास करते है. कुल मिला कर दर्शनीय स्थल है. यहाँ पर आकर देखें साक्षात् प्रकृति सौंदर्य का लाभ मिलता है.       
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बुधवार, 16 जून 2010

मेरा नया ब्लाग-चलती का नाम गाड़ी

मैने बहुत यात्राएं की हैं, लाखों किलोमीटर की यात्राएं, इन यात्राओं में प्रत्येक यात्रा एक अलग अनुभव रहा है। इन यात्राओं से हमे कुछ न कुछ जीवन नया सीखने को मिलता है। यात्राओं का आनंद तब और भी बढ जाता है जब आप ऐसे स्थान पर पहुंच जाएं जहां आपको जानने वाला कोई न हो। बहुत सारी आशंकाए आपके मन में उमड़ती घुमड़ती हों कि कब क्या दुर्घटना घट जाए आपके साथ। इन दुर्घटनाओं का पता नहीं होता। लेकिन फ़िर भी हम यात्राओं पर जाते हैं। समुद्र का नीला जल, उतुन्ग पर्वत आपको अपनी ओर बुलाते हैं, अनायास ही आपको खींचते हैं। इन यात्राओं में मिले हुए अजनबी आपके जीवन भर के मित्र बन जाते हैं। जीवन के सफ़र के साथ यह यात्राएं चलते रहती हैं।

मैने इन यात्राओं से बहुत कुछ सीखा है। मेरे मित्रों ने विशेष गुजारिश की है कि आप यात्रा का एक ब्लाग अलग बना कर उस पर सिर्फ़ अपने यात्रा संस्मरण ही लिखें। जिससे उन्हे भी बहुत कुछ सीखने मिलेगा तथा जगह की दु्श्वारियों के विषय में पता चलेगा। इसलिए मित्रों मैने नया ब्लाग चलती का नाम गाड़ी बनाया है। इस ब्लाग पर मैं अपने यात्रा संस्मरण ही लिखुंगा जोकि मेरी डायरी एवं मस्तिष्क की स्मृतियों में दर्ज हैं। आशा है कि आपको अवश्य ही पसंद आएगा।
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